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समस्या यानी सत्य की अनभिज्ञता
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में फंस गया हूं ।' पिता ने पूछा- 'ऐसी क्या बात है ? क्या आज कहीं से भोजन का निमंत्रण नहीं मिला ?' पुत्र ने खेदभरे स्वर में कहा- 'भोजन का निमंत्रण मिला था और मैं अभी-अभी भोजन करके आया हूं किन्तु फिर दूसरी जगह से निमंत्रण आ गया है और पेट में जगह ही नहीं है, पेट फट रहा है ।'
पिता ने फटकारते हुए कहा-निमंत्रण नहीं ।'
'मूर्ख ! प्राण बार-बार मिलेंगे किन्तु भोजन का
आप अपने जीवन में देखें । हम तृप्ति के लिए सब कुछ कर रहे हैं। यथार्थता के लिए नहीं । इन्द्रियां तृप्ति चाहती हैं और कर्तव्य संयम । इन दोनों सामंजस्य कैसे हो ? लक्ष्य को निर्धारित करने से ही विसंगति मिट सकती है । व्यक्ति को आकर्षणकेन्द्र बदलना होगा और जिस दिन यह बदलेगा उसी दिन इन्द्रियों और कर्तव्य में सामंजस्य होगा ।
आकर्षण का केन्द्र
इन्द्रियों का आकर्षण बाह्य जगत् की ओर है । मैं आपको देखता हूं किन्तु स्वयं को नहीं देख पाता । मैं दुनिया का कोलाहल सुनता हूं किन्तु अपने अन्तर के स्वर को सुन नहीं पाता । यदि मेरा आकर्षण अन्तर - जगत् की ओर होता तो संयम की समस्या नहीं होती । मेरा घर मेरे लिए आकर्षण का केन्द्र नहीं है, दूसरों के घर में आकर्षण लगता है । अपनी थाली का भोजन पसन्द नहीं, दूसरे की थाली में जो है वह प्रिय लगता है । दूसरों को अच्छा मानते हैं, स्वयं को नहीं जानते । इसलिए संयम की कठिनाई है । भगवान् महावीर की वाणी में कहते हैं— 'आय तुले पयासु' । वेदों का स्वर गाते हैं— 'एक ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ।' किन्तु जैन और वेदान्ती दोनों ही अपनी-अपनी दूकान पर यह वाक्य भूल जाते हैं ।
सुनने की बात करने की बात
एक ब्रह्मवादी अपने पुत्र के साथ प्रवचन में गया । पुत्र ने प्रवचन में सुना कि आत्मा सबकी एक है और ब्रह्म की ही माया है, कहीं भेद नहीं है। प्रवचन के बाद पुत्र अपनी दूकान पर आया । अनाज के ढेर से गाय अनाज चर रही थी । उसने 'एकं बह्म' के अनुसार गाय को नहीं हटाया; क्योंकि वह समझ गया था कि सब ब्रह्म की माया है । पिता ने गाय को अनाज चरते देखा तो क्रोधित होकर पुत्र को डांटने लगा । पुत्र ने प्रवचन की बात दोहराई। पिता ने डांटते हुए कहा- 'वह केवल सुनने की बात थी, करने की नहीं । प्रवचन की बात दुकान पर नहीं चल सकती । '
यह क्यों होता है ? हमें इसके कारण पर विचार करना चाहिए । इसका कारण है, अनुभूति की तीव्रता का अभाव । हम सुनते हैं किन्तु अनुभूति में तीव्रता नहीं आती इसलिए सुनना कार्यकर नहीं होता ।
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