Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 189
________________ विस्मृति का वरदान मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूं, वही कह रहा हूं, जिसका जीवन में अनेक बार अनुभव होता है । जिन लोगों ने स्मृति का अभिशाप भोगा है, वे बड़ी तीव्रता से अनुभव करते हैं कि विस्मृति वरदान है किन्तु बहुत दुर्लभ । स्मृति के वरदान से भी अधिक दुर्लभ । स्मृति किसकी १. स्मृति उसकी होती है, जो अतीत में अनुभूत हो । जो हमने देखा, सुना, संवेदन किया, वह हमारी ज्ञानधारा में समाकर संस्कार का रूप ले लेता है । निमित्त बनकर वह उबुद्ध होता है और अतीत वर्तमान में प्रतिबिम्बित हो जाता है । २. यह हमारे जीवन की ज्वलन्त समस्या है कि जिसकी स्मृति होनी चाहिए, उसकी विस्मृति हो जाती है और जिसकी विस्मृति होनी चाहिए, उसकी स्मृति होती रहती है। ३. उपकार की बात लोग भूल जाते हैं पर अपकार की बात नहीं भूलते । किसी मित्र के सामने आने पर सारी बातें याद नहीं भी आतीं पर शत्रु के सामने आते ही अतीत साकार हो उठता है। वरदान भी, अभिशाप भी ___ भलाई के प्रति भलाई का हेतु भी स्मृति है और बुराई के प्रति बुराई का हेतु भी वही है। इसीलिए स्मृति वरदान भी है और अभिशाप भी । अकरणीय कार्य को भुलाकर हम बहुत बार ऐसी भूल कर बैठते हैं कि उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । अकरणीय को बार-बार याद करके भी हम अपने प्रति न्याय नहीं करते । इसीलिए विस्मृति अभिशाप भी है और वरदान भी । स्मृति के ' अभिशाप से वही मुक्त हो सकता है, जिसे विस्मृति का वरदान प्राप्त हो । दुर्व्यसनों की स्मृति अभिशाप से भी लम्बी बनती है | प्रियजन की स्मृति ही असंख्य आत्महत्याओं का हेतु बनती है। साम्प्रदायिक एकता में सबसे बड़ी बाधा स्मृति ही तो है । स्मृति का सूत्र नहीं होता तो प्रतिशोध की बात ही नहीं होती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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