________________
पूंजीवाद और अणुव्रत
१६९ को दबा दे । अणुव्रत प्राकृतिक चिकित्सा है, जहां दोष दबाये नहीं जाते, नष्ट किये जाते
हृदय शुद्धि की प्रक्रिया
व्रत व्यक्ति के हृदय शुद्धि की प्रक्रिया है । व्यवस्था और हृदय परिवर्तन दोनों का योग होना चाहिए। समाजवाद में व्यवस्था है किन्तु अध्यात्म और हृदय-परिवर्तन नहीं रहने के कारण वहां अधिनायकवाद पनपता है । व्रत के साथ हृदय परिवर्तन है किन्तु वहां व्यवस्था की ओर ध्यान न दिए जाने के कारण जीवन पद्धित और व्रत में तालमेल नहीं बैठता । व्रत और व्यवस्था दोनों का सामंजस्य होगा तभी नया परिणाम आयेगा । व्यवस्था का सुधार हो और व्रत का जीवन में प्रयोग । व्रत की भावना विकसित हो । सरकार व्यवस्था में परिवर्तन करे । रूपक की भाषा में कहना चाहूंगा कि जिस दिन ऋषि
और राजनीतिज्ञ का समन्वय होगा तभी यह समस्या सुलझेगी । अध्यात्म और राजनीति दोनों विपरीत दिशाओं में न चलकर समानान्तर रेखा पर चलेंगे, तब समाधान के निकट जायेंगे । अध्यात्म और व्यवस्था का योग होने से पूंजीवाद के दोष समाप्त होंगे, पूंजीवाद । की शुद्ध शक्ति सामने आएगी और विकृति मिट जायेगी । तब फिर वर्गों का तनाव, संघर्ष
और परस्पर काटने की बात नहीं होगी । भय नहीं होगा, तनाव नहीं होगा क्योंकि वहां संविभागी व्यवस्था होगी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org