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सभ्यता और शिष्टाचार
सभ्यता और शिष्टता, ये दोनों सामाजिक जीवन के अलंकरण हैं । हर सामाजिक मनुष्य सभ्य और शिष्ट होना चाहता है । किन्तु सभ्य और शिष्ट वही बन सकता है जो अपनी ऊर्मियों (आवेगो) पर नियंत्रण रख सकता है । मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि अनेक ऊर्मियां होती हैं । ये एक सीमा तक सामाजकि जीवन में खप जाती हैं । किन्तु सीमा का अतिक्रमण होने पर ये भयंकर बन जाती हैं । शांति का सूत्र
पारिवारिक जीवन में शांति बनाये रखने का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है क्रोध की मात्रा को कम करना । क्रोध से अपना व्यक्तिगत तथा पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है । क्रोधी आदमी का हर जगह से बहिष्कार किया जाता है।
हम चांडाल से घृणा करते हैं। यह हमारा अज्ञान है । क्रोधी मनुष्य घृणा का पात्र नहीं होता। हर आदमी में वही महान् आत्मा छिपी हुई है, जो हम में है । हम कुछ बाहरी निमित्तों से बंटे हुए हैं, फिर भी मौलिक रूप में एक ही विशाल परिवार के सदस्य हैं।
जिस चांडाल से घृणा की जा सकती है, वह है क्रोध । क्या ऐसा कोई आदमी है जिसके घट में क्रोध उफन रहा है और वह चांडाल नहीं है ? क्रोध है चांडाल
एक व्यक्ति नदी से स्नान कर आ रहा था । मार्ग में वह चंडालिन से छू गया । वह एक ही क्षण में क्रोध से भर गया । उसकी आंखें लाल हो गईं। वह चंडालिन पर बरस पड़ा | चंडालिन कुछ देर सुनती रही । फिर भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ । लोग इकट्ठे हो गए । चंडालिन ने निकट आ उसका हाथ पकड़ लिया । लोगों ने कहा—'तुम ऐसा क्यों करती हो?' वह बोली- 'यह मेरा पति है, मैं इसे अपने घर ले जाना चाहती हूं।' उसका क्रोध और बढ़ गया। उसने हाथ छुड़ाना चाहा पर चंडालिन ने छोड़ा नहीं। आखिर पुलिस आयी । दोनों को पकड़ कर न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया ।
उस आदमी का क्रोध अब शान्त हुआ । उसे अपने किए पर अनुताप हुआ | न्यायाधीश ने पूछा-तुम किसलिए लड़े ?'
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