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समस्या यानी सत्य की अनभिज्ञता
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किसान के लिये समस्या हो गई कि किसके लिये प्रार्थना करे ? एक पुत्री वर्षा चाहती है, दूसरी नहीं चाहती । उसने अनेकान्त से सामंजस्य का सिद्धान्त निकालकर दोनों पुत्रियों को एक साथ समझाते हुए कहा- “यदि वर्षा हो गई तो खेती में अनाज होगा जिससे आधा अपनी छोटी बहन को दे देना और यदि वर्षा नहीं हुई तो घड़े अच्छे पकेंगे जिससे आमदनी का आधा हिस्सा छोटी बहन बड़ी को दे देगी और इस प्रकार दोनों का काम चल जायेगा ।" आंतरिक तड़फ जागे
समाज में इस प्रकार के अनेक विरोधी हित होते हैं। दुकानदार और ग्राहक , जनता और कर्मचारी, छात्र और अध्यापक, मालिक और मजदूर आदि ये विरोधी हित हैं । यदि सत्य के निकट पहुंच जाएं तो विरोधी हितों में भी सामंजस्य हो सकता है । यदि आज समाज में नये मूल्यों का सामंजस्य किया जा सके तो समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
। मनुष्य में यदि सत्य की जिज्ञासा और निष्ठा नहीं है तो वह अच्छा नहीं बन सकता। प्रगति और विकास का द्वार बन्द ही रहेगा । इसलिये सबसे पहले सत्य को पहचानें और फिर उसे स्वीकार करें । मन. के आवरणों को हटाकर- मैला, कूड़ा-कर्कट निकालकर स्वच्छता स्वीकार करें और दृष्टि साफ कर ज्ञान को परिष्कृत करें। ज्ञान, दर्शन और चारित्र की समन्विति तभी होगी जब हम दृष्टि साफ रखेंगे । इसके लिये सत्य की प्रबल जिज्ञासा होनी चाहिए । आन्तरिक तड़प हो ठीक वैसी ही जैसी मछली को जल की तड़प होती है । इस तड़प और जिज्ञासा के बिना मनुष्य जहां का तहां रहेगा ।
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