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समस्या को देखना सीखें
मरता है । नाम और रूप- इन दोनों का व्यामोह बहुत होता है । जो ब्रह्म अकेला था उसने भी नाम और रूप के स्वरूप अवतार लिया, ऐसा कहा जाता है । नाम, आकार या रूप की कल्पना के आधार पर हमारा काम होता है । दैनिक जीवन और व्यवहार में व्यक्ति इनसे प्रभावित होकर कार्य करते हैं । जैन वेशभूषा वाले साधु को देखकर जैन वंदन करते हैं किन्तु वैष्णव और अन्य सम्प्रदाय वाले नहीं । वैसे ही वैष्णव वेशभूषा वाले संत को केवल वैष्णव सिर झुकाते हैं । साधुत्व और सचाई को लोग अकसर नहीं देख पाते हैं | केवल नाम, वेशभूषा और रूप के आधार पर हजारों व्यक्ति पूजे जाते हैं । कारण है आवरण
लड़ाई-झगड़े शब्दों के आधार पर चलते हैं । वैमनस्य और युद्ध इसीलिए पनपते हैं । आज दुनिया की लड़ाई शब्दों पर चल रही है । नाम और रूप के आधार पर समस्त जगत् चल रहा है और सत्य को पकड़ने की यही बड़ी बाधा है । गधे की पूंछ पकड़ ली
और अब गधा लात भी मार रहा है किन्तु व्यक्ति उस पूंछ को छोड़ना नहीं चाहता । शब्दों की पकड़ भी इसी प्रकार तीव्र हो जाती है । आज के धार्मिक भी शब्दों की पकड़ भी में चल रहे हैं । भगवान ने कहीं नहीं कहा कि 'मेरी पूजा-उपासना करना ।' उन्होंने नैतिकता का उपदेश दिया । श्रावक के बारह व्रत बताये किन्तु भक्तों ने सीधा रास्ता निकाल कर केवल शब्द पकड़े और भगवान् की उपासना प्रारम्भ कर दी | उनके उपदेशों को जीवन में उतारने की ज़रूरत भूल गए | ऐसा क्यों होता है ? इसका कारण है आवरण | आवरण आ जाने से व्यक्ति सत्य को देख नहीं पाता, उसे पहचान नहीं सकता । दर्पण है किन्तु यदि वह धुंधला है, उस पर परदा है, वह हिल रहा है तो उसमें प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं उभरेगा । यह हमारे मन का आवरण, उसकी चंचलता और व्यामोह ही हमें सत्य तक नहीं जाने दे रहा है । यदि आवरण, चंचलता, व्यामोह आदि की समस्या सुलझ जाए तो फिर कोई कठिनाई नहीं है। सामंजस्य विरोधी हितों का
समाज के विरोधी हितों का क्या सामंजस्य नहीं किया जा सकता ? यदि अनेकान्त और सह-अस्तित्व की दृष्टि अपनायी जाए तो सामंजस्य कठिन नहीं है ।
एक कुम्हार के दो पुत्रियां थीं । एक किसान के और दूसरी कुम्हार के घर ब्याही गई थी । एक दिन पिता अपनी पहली पुत्री के घर गया, जो किसान की पत्नी थी, उससे पूछा कि सुखी तो है न ? लड़की ने कहा- "और तो सब ठीक है पर वर्षा के बिना खेती चौपट हो रही है । इसलिए भगवान से प्रार्थना करो कि वर्षा करे ।" दूसरी बेटी के घर गया, जो कुम्हार की पत्नी थी, उसने कहा- “पिताजी कच्चे घड़ों को पकाने के लिये अलाव जलाया है इसलिये भगवान से प्रार्थना करो कि वर्षा न हो, अन्यथा हम भूखे मर जायेंगे।"
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