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वैज्ञानिक चेतना से नशा मुक्ति
हमारे युवा वर्ग में नशा करने की आदत बड़ी तेजी से बढ़ रही है । नशा उर्दू भाषा का शब्द है । संस्कृत तथा हिन्दी में इसके लिए उन्माद या पागलपन शब्द है । चेतना का विकृत हो जाना, बिगड़ जाना, भान भूल जाना नशे की प्रकृति है । वज्ञान का प्रतिपादन
नशा करना पहले भी चलता था, लेकिन इस प्रवृत्ति पर इतना ध्यान नहीं गया । जैन आचार्यों ने सात कुव्यसन बतलाए, उनमें एक नशा भी है। शराब का उसमें प्रतिपादन किया गया, छुड़ाया भी गया । एक ऐसी जाति का निर्माण कर दिया, जो मांस और शराब से बिल्कुल दूर हो गई । समझाने का पुराना तरीका यह रहा कि शराब पीना, नशा करना अच्छा नहीं । इससे चेतना विकृति होती है । परलोक में नरक मिलता है, इस तरह भय
और विकृत में इसका प्रतिपादन किया गया । किन्तु विज्ञान ने इस विषय का जो प्रतिपादन किया है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । नशा आज एक समस्या के रूप में है । समस्या तो पहले भी थी किन्तु अब और जटिल बन गई है । सुना भी और पढ़ा है कि इन एकदो वर्षों में अमरीका में दो करोड़ लोगों ने सिगरेट पीना छोड़ दिया । वहां पर सिगरेट पीना इसलिए नहीं छोड़ा कि मरने के बाद नरक मिलेगा, पाप कर्मों का बन्धन होगा, बल्कि इसलिए छोड़ी कि सिगरेट पीने से फैफड़े खराब होते हैं, स्वास्थ्य खराब्ब हो जाता है । अवसर, दिल के दोरे पड़ना एवं कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से व्यक्ति ग्रसित हो जाता है । जब से नशे से होने वाले नुकसानप्रद तथ्यों को डाक्टरों, वैज्ञानिकों ने जनता के सामने रखा तो सब लोग चौंक गए । इतने भयभीत हुए कि समझाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। स्वतः ही नशा छोड़ते गए । किसी ने यह भी नहीं कहा, “तुम्हें छोड़ देना चाहिए।" परिणाम सामने आया तो लोगों में आशंकाएं एवं आतंक पैदा हुआ । अर्थ की हानि और मौत को निमंत्रण मिल जाए, इससे बढ़कर और खतरनाक क्या बात हो सकती है ? तम्बाखूः भयंकर नशा
तम्बाखू इन दिनों नशे में खूब काम आ रही है । बीड़ी, सिगरेट एवं खैनी सभी में तम्बाखू के ही अलग-अलग रूप हैं । तम्बाखू का खाना, पीना एवं होठों में दबाकर
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