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समस्या को देखना सीखें
अपना ही घर और अपने लिए प्रवेश निषिद्ध । इस स्थिति में जब आदमी बाहर भटकता है तो वह हैं कल्पना का साम्राज्य बहुत बढ़ा लेता है। आज के युग की जो सबसे बड़ी सामाजिक समस्या है, वह काल्पनिक दृष्टि । मनुष्य ने आवश्यकता के कुछ ऐसे मानदंड बना लिए, कृत्रिम रेखाएं खींच लीं, विकसित व्यक्ति और विकसित समाज की अपनी अवधारणाएं बना लीं और वह उन्हें पाने की भाग-दौड़ में व्यथित होने लगा ।
सामाजिक समस्या का निदर्शन
२५०० वर्ष की बात है । डरावनी रात थी । भयंकर वर्षा हो रही थी । सम्राट् श्रेणिक महल में बैठा था । सहसा बिजली कौंधी । उस बिजली के प्रकाश में सम्राट् ने देखा - एक आदमी नदी के पास काम कर रहा था, कुछ चुन रहा था। सम्राट् यह देखकर सहम गया । उसने तत्काल अभयकुमार को बुलाकर कहा- - हमारे राज्य में इतनी गरीबी है, इतना अभाव है कि ऐसी भयंकर रात में भी व्यक्ति को विवश होकर जंगल में काम करना पड़ता है । जाओ ! तलाश करो और उसे यहां बुलाओ । उस व्यक्ति को लाया गया । वह व्यक्ति मम्मण सेठ के नाम से जाना जाता था । श्रेणिक ने पूछा— भद्रपुरुष ! क्या तुम्हें खाने को रोटी नहीं मिलती ?
'महाराज ऐसी बात नहीं है ।"
फिर किस व्यथा में इतनी भयंकर रात में भी तुम नदी के किनारे कार्यरत थे । 'महाराज ! मेरे पास एक ही बैल है, उसकी जोड़ी नहीं है ।'
सम्राट ने उसे तुरन्त बैल दिलवाने का आदेश प्रदान किया ।
'महाराज ! क्षमा करें। जो बैल मेरे पास है, उसकी जोड़ी पूरी करना आपके वश की बात नहीं है ।'
क्यों ? ऐसी क्या विशेषता है तुम्हारे बैल में ?
'महाराज ! कृपया आप पहले उसे देख लें फिर उसकी जोड़ी का बैल दिलाने का आदेश प्रदान करें ।'
कहां है तुम्हारा बैल ?
'वह मेरे घर में है । उस बैल के अवलोकनार्थ आपको मेरे घर पधारना होगा । उस बैल को यहां लाया नहीं जा सकता ।'
सम्राट् ने दूसरे दिन उसके घर जाने का निर्णय किया। सम्राट् मम्मण सेठ के घर पहुंचा । मम्मण सेठ अच्छे गहने-कपड़े पहने हुए सम्राट् के स्वागत में प्रस्तुत था । सम्राट् को बड़ा आश्चर्य हुआ । सम्राट ने बैल के बारे में पूछा— 'कहां है बैल ?'
'राजन् ! वह बैल भूतल में है ?'
वह सम्राट् को भौंहारे में ले गया । सम्राट् बैल को विस्फोटित नेत्रों से देखता ही रह गया । सम्राट् की आंखें खुली रह गईं। वह रत्नजड़ित बैल था । उससे तज किरणें
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