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समस्या को देखना सीखें
प्रतिपादन किसके लिए किया है ? क्या अपने अनुयायियों के लिए किया ? क्या जैनों के लिए या किसी अन्य वर्ग के लिए किया ? किसके लिए? इसका क्या उत्तर हो सकता है ? महावीर ने जब धर्म का प्रतिपादन किया तब उनका कोई अनुयायी था ही नहीं । उनकी पहली सभा में, जिसमें उन्होंने धर्म का उपदेश दिया, कोई मनुष्य भी सुनने वाला नहीं था । उन्होंने जो सत्य देखा उसका निरूपण कर दिया | किसके लिए किया, इसके उत्तर में कहा गया—भगवान् ने किसी एक प्राणी के लिए धर्म का प्रतिपादन नहीं किया किन्तु कोई प्राणी किसी प्राणी को नहीं मारे इसलिए भगवान ने धर्म का प्रतिपादन किया।
यह है धर्म का विस्तृत और व्यापक दृष्टिकोण । उनका धर्म किसी वर्ग विशेष के लिये नहीं है । महावीर का धर्म उस व्यक्ति के लिये है, जो किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता और किसी भी जीव को पीड़ित नहीं करता । किसी भी प्राणी को मत मारो, किसी भी प्राणी को मत सताओ, किसी भी प्राणी को अपना दास मत बनाओ, किसी भी प्राणी पर हुकूमत मत करो और किसी भी प्राणी को अपने अधीन मत रखो ।' यह मेरा धर्म है । यह महावीर का धर्म, जिसे हम शाश्वत तथा व्यापक धर्म कह सकते हैं, कितना सर्वोदयी है ? कुलकर से राजतंत्र तक
वर्तमान की दुनिया में स्वतंत्रता का जितना मूल्यांकन हुआ है, शायद पिछले किसी भी युग में नहीं हुआ । हम आदिकाल से लें । आदिकाल का इतिहास एक वनवासी इतिहास है । मनुष्य सामाजिक नहीं था, जंगल में रहता था । जब से वह सामाजिक बना और समाज में रहने लगा, हमारे यहां कुलकर की पद्धति शुरू हुई । शासन कौटुम्बिक व्यवस्था के रूप में चलता था ! कुटुंब का मुखिया सब कुछ होता था । वह यदि चाहता तो किसी को मार भी सकता था | उत्तराधिकार कुटुम्ब का चलता था । सारी कौटुम्बिक पद्धति चलती थी । फिर उसका विकास हुआ तो राजतंत्र आया । राजतंत्र में राजा को सर्वाधिकार दिया गया । उसे इतने अधिकार दिए गए कि राजा को ईश्वर का रूप और अवतार मान लिया गया । राजा जो चाहता कर सकता था । उसे सब कुछ करने का अधिकार था ।
दास प्रथा का युग
आरम्भ के इतिहास से लेकर राजतंत्र के इतिहास तक स्वतंत्रता नाम की कोई चीज नहीं थी । स्वतंत्रता का कोई विशेष मूल्य नहीं था । हमारे यहां 'बेगार' ली जाती थी, कौटलीय अर्थशास्त्र और जैन साहित्य में जिसे 'वेष्टि' कहा गया है । जिस व्यक्ति के मन में आया कि इससे काम लेना है, उसे दाम देने की कोई बात नहीं, मूल्य चुकाने की कोई बात नहीं, उसके जीवन-निर्वाह की चिन्ता की कोई बात नहीं, किन्तु उससे काम लेना सरकार या राज्य का अधिकार था । अतः एक बैल से जैसे काम लिया जाता है
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