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अध्यात्म का व्यावहारिक मूल्य
केवल बाह्य चमड़े को देखा जा रहा है। ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि ऋषिपुत्रों के पास अध्यात्म-दृष्टि का अभाव था । उनकी वह दृष्टि धूमिल थी। भारत की उस आध्यात्मिकदृष्टि का ह्रास हुआ है और वह दृष्टि धुंधली हो रही है। आचार्य तुलसी वही अध्यात्मदृष्टि देना चाहते हैं । वे आध्यात्मिक अनुभूति देते हैं। जो उसे प्राप्त कर लेता है, उसे शान्ति का रहस्य प्राप्त हो जाता है ।
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