________________
१३२
समस्या को देखना सीखें
पद्धतियां, क्रियाकांड- ये हमारे भोजन हैं । एक आदमी पूजा में, जप में, क्रियाकांड में आधा घंटा लगा सकता है, एक घंटा लगा सकता है। इतना निकम्मा तो नहीं कि सारा दिन ही पूजा में लगाये | यदि सारा दिन लगा दे तो वह आर्थिक हानि से दब जायेगा। सामाजिक दृष्टि से पिछड़ जायेगा । ज्ञान-विज्ञान और भौतिक क्षेत्र में पिछड़ जायेगा ऐसा हिन्दुस्तानी लोगों में हुआ है कि एक ओर तो बाहर से शत्रुओं का आक्रमण होता रहा
और दूसरी ओर जो उत्तरदायित्वपूर्ण व्यक्ति थे, स्वयं पूजा-उपासना में बैठे रहे । यह भला कैसी पद्धति है, समझ में नहीं आती । जीवन का मूल धर्म
धर्म शाश्वत है । वह हमारे श्वास की तरह है, जो निरन्तर होना चाहिए। दो घंटा तो मैं प्रामाणिक हूं शेष घंटा प्रामाणिक नहीं। मंदिर में जाता साधुओं के स्थान पर आता हूं तो प्रामाणिक हूं और जब मैं दुकान पर जाता हूं तब धार्मिक भी नहीं हूं और प्रामाणिक भी नहीं हूं। यह धर्म की सबसे बड़ी हत्या और सबसे बड़ी मखौल है। ऐसा क्यों हुआ? इसीलिए कि हमने उपासना को ही धर्म मान लिया | आचरण को धर्म नहीं माना और शाश्वत धर्म को नहीं पहचाना । उसी का ही यह परिणाम है; अन्यथा होना यह चाहिए कि कोई व्यक्ति उपासना कर सके या न कर सके किन्तु कम-से-कम श्वास तो लेता रहे, जिससे वह जीवित रह सके । हमारे जीने की यह प्रक्रिया थी । हमारी जो श्वास लेने की प्रक्रिया । प्राण भरने की प्रक्रिया थी, उसे तो हमने भुला दिया; और केवल ऊपरी भोजन पर सारा निष्कर्ष निकाल दिया । यही कारण है कि आज धर्म के द्वारा भी जो होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है । यदि ऐसा हो जाए हमारे जीवन का मूल धर्म बने और नियम-उपासना हमारे जीवन का गौण धर्म बने तो जीवन की सही प्रतिष्ठा हो सकती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org