________________
अशान्ति की समस्या
सुख की खोज सुलभ नहीं तो शायद उसका प्रतिपादन भी सुलभ नहीं । मनुष्य की सारी साधना सुख और शान्ति के लिए होती है । यह मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है । प्रश्न यह होता है कि मनुष्य सुख और शान्ति की साधना करता है तो उसे अशान्ति क्यों मिलती है ? बिना चाहे ही अशान्ति क्यों आ जाती है ? . अशान्ति दो प्रकार की होती है— कल्पनाप्रसूत और मान्यताप्रसूत । इसी तरह सुख के कई प्रकार हैं- आरोग्य, दीर्घायु, सम्पन्नता आदि । प्रत्येक मनुष्य स्वस्थ रहना चाहता है, प्रत्येक मनुष्य दीर्घायु होना चाहता है और प्रत्येक मनुष्य सम्पन्न होना चाहता है। मनुष्य ही क्यों, प्रत्येक राष्ट्र के अधिनायक भी यही चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र सब प्रकार से समृद्धिशाली, सुखी बने । आजकल जिस राष्ट्र की जनता सुखी नहीं होती, उसको अच्छा नहीं समाना जाता । हमारे प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा था-स्वतन्त्रता प्राप्त होने के पश्चात् हमारे देशवासियों की आयु में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र के कर्णधार यही चाहते हैं कि हमारे देश के वासी अधिक-से-अधिक सुखमय जीवन व्यतीत करें।
शान्ति और सुख
__मनुष्य में जब माया, मोह, लोभ आदि का आवेग आ जाता है तब उसे अशान्ति होती है | शान्ति नहीं तो सुख भी नहीं । शान्ति के बिना मनुष्य सुख की अनुभूति भी नहीं कर सकता । धन सुख का साधन माना जाता है परन्तु यदि एक धनी-मनुष्य रुग्ण है तो उसे शान्ति की अनुभूति नहीं होती । इसी प्रकार यदि एक मनुष्य अच्छा-अच्छा भोजन करने में सुख का अनुभव करता है और वही यदि बुखार-पीड़ित होने पर दिया जाए तो उसे वह अच्छा नहीं लगेगा । एक मनुष्य की संगीत में रुचि है परन्तु यदि उसके मन में अशान्ति है तो उसे सुख की अनुभूति नहीं होगी । शान्ति और सुख का साहचर्य है, उनमें कार्य-कारण का भाव नहीं है हमारा साध्य सुख है शान्ति नहीं । शान्ति के अभाव में सुख नहीं मिलता, इसीलिए शान्ति को महत्त्व अधिक दिया जाता है । शान्ति का अर्थ है शमन । रोग को शान्त करने के लिए चिकित्सा की जाती है | लोग कहते हैं रोग शान्त हो गया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org