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समस्या को देखना सीखें
उभरते रहते हैं किन्तु उनका समाधान तब तक नहीं होता जब तक हमारा मन बाहर रहता है। मन की एकाग्रता होते ही, उसकी स्थिरता आते ही सारे प्रश्न समाहृत हो जाते हैंयही योग है। आज का युग बौद्धिक युग है, जहां व्यक्ति पर असंख्य दबाव और तनाव आते रहते हैं । बाह्य परिस्थितियों, जीवन के संघर्षों एवं प्रवृत्तियों का मानव मस्तिष्क पर अत्याधिक दबाव रहता है, जिससे उसे अशांति मिलती है । इस अशांति से बचने का उपाय है योग और अध्यात्म । अपने अन्तर में चले जाना, स्वयं के सागर की गहराई में डूब जाना ही योग है। अपने आप से बाहर जाना ही अशान्ति का कारण है । भौतिक प्रगति करने वाले जितने भी देश हैं, वहां की स्थिति देखने से पता लगता है कि केवल बाह्य से उन्हें कितनी अशान्ति मिल रही है । बिटल्स और हिप्पी जैसी पौध इसलिए पनप रही है कि वहां चैन और शांति का अभाव है । अशांति का एक कारण अभाव होता है तो दूसरा कारण अतिभाव भी है । अभाव यदि इष्ट नहीं है तो अतिभाव भी लाभदायक नहीं । अभाव सुख नहीं देता है तो अतिभाव भी पागलपन और उन्माद देनेवाला होता
अध्यात्म का व्यावहारिक लाभ
अध्यात्म की भूमिका गहरी और ऊंची है किन्तु एक बार उसे छोड़कर अध्यात्म का व्यावहारिक लाभ देखें तो वह भी बहुत है। व्यक्तित्व का मूल्यांकन आध्यात्मिक भावना से ही हो सकता है । अध्यात्म-दृष्टि के बिना आदमी को आदमी की दृष्टि से नहीं आंककर उपयोगिता की दृष्टि से आंका जाने लगता है जैसा आज अंकन हो रहा है । वस्तु का मूल्यांकन सही और शुद्ध दृष्टि से न होकर उपयोगिता की दृष्टि से होना अध्यात्म का अभाव है । किसी वस्तु का मूल्य कितना है वह उसकी उपयोगिता पर निर्भर होने लगता है । आजकल वृद्धजनों की उपयोगिता में संदेह करते हुए, कहीं-कहीं उन्हें गोली मारने का भी स्वर उभरता है और अनेक घरों में तो आज वृद्धों को किसी कोने में डालकर घंटी बजाने पर रोटी-पानी देने मात्र के योग्य समझा जाने लगा है, क्योंकि उनकी उपयोगिता नहीं है । ऐसी स्थिति अध्यात्म के अभाव की परिचायक है । हमारी दृष्टि जब तक उपयोगिता की रहेगी हम वस्तु के अस्तित्व का मूल्य नहीं आंक सकेंगे। धुंधलाती दृष्टि
प्रत्येक वस्तु का स्वतन्त्र अस्तित्व होता है और उस अस्तित्व को जानकर मूल्यांकन करना अध्यात्म-दृष्टि का कार्य है । अष्टावक्र ऋषिकुमारों की सभा में पहुंचे तो सारे ऋषिपुत्र उनके आठ स्थानों से टेढ़े-मेढ़े शरीर को देखकर हँस पडे । अष्टावक्र ने अपने सम्बोधन में कहा- मैं चर्मकारों की सभा में उपस्थित हुआ हूं जहां मेरे अध्यात्म को नहीं
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