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धर्म की समस्या : धार्मिक का खंडित व्यक्तित्व
दुनिया में बहुत सारे वाद और विवाद चल रहे हैं । सत्य को पाने के लिए सब वादविवाद प्रयत्नशील हैं। परन्तु क्या किसी ने सत्य को प्राप्त किया ? कोल्हू का बैल कोल्हू के इर्द-गिर्द घूमता रहता है । घंटों तक गतिशील रहने पर भी वह आगे नहीं बढ़ पाता। ठीक यही दशा वादों और विवादों की है । वादों और विवादों के द्वारा किसी ने भी सत्य नहीं पाया । तब प्रश्न आया क्या करना चाहिए ? सत्य के लिए वादों के अखाड़े को छोड़ दो, वादों के संघर्ष को छोड़ दो और अध्यात्म का अनुचिंतन करो |
अध्यात्म
अध्यात्म कोई वाद नहीं है । अध्यात्म सबसे अलग रहने वाली वस्तु नहीं है। अध्यात्म किसी पाताल-लोक में बसने वाली वस्तु भी नहीं है । किसी भी वस्तु की गहराई में चले जाइए । वहां सहज ही अध्यात्म का स्पर्श हो जाएगा । समुद्र को सामने से देखते हैं तो पानी दिखाई देता है । आस-पास से कुछ छोटे-मोटे केकड़े आदि जानवर दिखाई देते हैं । मछलियां भी तैरती हुई दिखाई देंगी । शंख, सीप आदि भी मिल जाते हैं। क्या समुद्र यही है ? यह तो समुद्र का दीखने वाला बाहरी रूप है । समुद्र की गहराई में जाने पर अनेक मूल्यवान चीजें उपलब्ध होती हैं । बाहरी रूप को देखने वाला व्यक्ति समुद्र में छिपे रत्नों से परिचित नहीं हो सकता । सामान्यतः लोगों की दृष्टि वस्तु के बाहरी आकार को ही देखती है । कि धार्मिक लोगों के जीवन में जो परिवर्तन नहीं आता, उसका मूल कारण यही है कि वे धर्म के बाहरी तल का स्पर्श करते हैं, उसकी गहराई तक नहीं जा पाते । आज वैज्ञानिकों ने चन्द्रलोक में मनुष्य को उतार दिया । कैसे उतारा? इसलिए कि वे अध्यात्म तक पहुंचे, उस चीज़ की गहराई तक पहुंचे । अध्यात्म का अर्थ होता है भीतर में होने वाला- इस पंडाल के भीतर होने वाला, इस भूमि के भीतर होने वाला, हमारे शरीर के भीतर में होने वालो । किसी भी वस्तु के भीतर में होने वाला जो है, वह अध्यात्म है। मान्यता और व्यवहार
धर्म की गहराई में कौन जाता है ? व्यक्ति मानता कुछ है और करता कुछ है। एक ओर मान्यता है और एक ओर सारा व्यवहार है । व्यक्ति की कुछ मौलिक मनोवृत्तियां
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