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महात्मा गांधी की आध्यात्मिकता
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रूपी चमकीला ढक्कन जब तक दूर न करें तब तक सत्य की झांकी क्यों कर होगी ? कोई कसूर करे तो उस पर क्रोध करने के बदले प्रेम करना क्या हमें रुचता है, हम संसार को असार कहकर गाते हैं सही, मगर क्या असार समझते भी हैं ?"" मनोबल का स्त्रोत
महात्मा गांधी के मनोबल का स्रोत है आत्मा की अनुभूति । उन्होंने उसके आधार पर ही परिवर्तन की संभावनाओं को स्वीकार किया । हिटलर के बारे में उन्होंने लिखा
निःशस्त्र पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों का अपने अन्दर कोई कटुता रखे बिना अहिंसात्मक प्रतिरोध करना उनके लिए एक अद्भुत अनुभव होगा । यह तो कौन कह सकता है कि ऊंची और श्रेष्ठ-शक्तियों का आदर करना उनके स्वभाव के ही विपरीत है । उनके भीतर भी तो वही आत्मा है, जो मेरे भीतर है।
"डॉ० बेनेसको मैं यही अस्त्र पेश करता हूं, जो कि दरअसल कमजोरों का नहीं बल्कि बहादुरों का हथियार है, क्योंकि मन में किसी के प्रति कटुता न रखकर, पूरी तरह यह विश्वास रखते हुए कि आत्मा के सिवा किसी का अस्तित्व नहीं रहता, दुनियां की किसी ताकत के सामने—पिर वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो—घुटने टेकने से दृढ़तापूर्वक इन्कार कर देने से बढ़कर कोई वीरता नहीं है ।"२ संदर्भ अहिंसा का
महात्मा गांधी के आध्यात्मिक विचारों पर गीता का बहुत प्रभाव रहा है किंतु इससे पूर्व श्रीमद् राजचन्द्र के विचारों का निकटतम साहचर्य रहा है । यह उनके अहिंसा के सूक्ष्म निरूपण से स्पष्ट होता है । विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था, विकेन्द्रित सत्ता, निःशस्त्रीकरणइन सिद्धान्तों को जैन श्रावक के लिए अल्प परिग्रह, स्वतंत्रता, अनर्थ हिंसा के संदर्भ में देखा जा सकता है । जैन आचार मीमांसा में हिंसा के दो विभाग मिलते हैं-अर्थ हिंसा और अनर्थ हिंसा । उत्तरवर्ती जैन आचार्यों ने इन दो हाब्दों के स्थान पर अनिवार्य हिंसा और वार्य हिंसा का प्रयोग किया है । महात्मा गांधी ने भी अहिंसा की मीमांसा में अनिवार्य हिंसा का प्रयोग कर हिंसा और अहिंसा के बीच बहुत स्पष्ट भेदरेखा खींची है । अनेक विचारक आवश्यक हिंसा को अहिंसा कहकर मौन हो जाते हैं । महात्मा गांधी ने अनिवार्य हिंसा को कभी अहिंसा नहीं माना । इस विषय में उनके कुछ विचार मननीय हैं
_ 'बंदर को मार भगाने में मैं शुद्ध हिंसा ही देखता हूं। यह भी स्पष्ट है उन्हें अगर मारना पड़े तो अधिक हिंसा होगी। यह हिंसा तीनों काल में हिंसा ही गिनी जाएगी ।"
एक बार महात्मा गांधी से प्रश्न किया गया—कोई मनुष्य या मनुष्यों का समुदाय
१. दैनिक जन सत्ता ७/१२/९२ २. हरिजन सेवक १५ अक्तूबर १९३८ पृ. २७६-२७७
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