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महात्मा गांधी की आध्यात्मिकता
महात्मा गांधी का व्यक्तित्व विशाल हिमखंड जैसा था । उसका सिरा राजनीतिक था और उसका आंतरिक भाग आध्यात्मिक । उन्होंने अपने जीवन में अनेक काठेनाइयों का सामना किया । अनेक शारीरिक कष्टों और यातनाओं को झेला। उनका मनोबल सबके सामने आया । तपोबल भी सामने आया । इनकी पृष्ठभूमि में छिपा हुआ था अध्यात्म बल । उसे बहुत कम लोग जान पाए । अध्यात्म सूक्ष्म जगत का तत्व है। स्थूल जगत् में विचरने वाले लोग वहां तक बहुत कम पहुंच पाते हैं। आज भी गांधी को मानने वाले उनकी अहिंसा को पकड़ते हैं, ग्यारह व्रतों को महत्व देते हैं किन्तु अहिंसा की पृष्ठभूमि में रही हुई अध्यात्म चेतना को नहीं पकड़ पा रहे हैं। समाज के क्षेत्र में काम करने के लिए व्यक्ति. को व्यावहारिक होना पड़ता है किन्तु जो अपने अंतस्तल में भी व्यावहारिक होता है, वह समाज का बहुत भला नहीं कर पाता ।
गांधी की आध्यात्मिकता
गांधीजी का जन्म एक धार्मिक परिवार में हुआ था । उन्हे धर्म के संस्कार एक जैन मुनि से मिले और अध्यात्म के बीज श्रीमद् राजचंद्र से मिले । उनकी आध्यात्मिकता ने उन्हें भौतिकवाद के झंझावतों से कभी आहत नहीं होने दिया । वर्तमान सभ्याता के बारे में उन्होंने जो कुछ लिखा, उसमें उनकी आध्यात्मिक गहराई को देखा जा सकता है
"सरल जीवन पेचिदा जीवन से अच्छा है, क्योंकि सरल जीवन में उच्च संस्कारो की ओर ध्यान देने के लिए समय मिल जाता है। प्राचीन सभ्यता में भागदौड बिल्कुल नहीं थी । आजकल लोग नीचे जमीन की ओर देखते हैं, उन दिनों वे आकाश की ओर देखते थे । वे अपना ध्यान शरीर पर केन्द्रित नहीं करते थे, अपितु आत्मा पर केन्द्रित रखते थे, जिसे वे शरीर से बिलकुल पृथक् देखते थे। उनकी दृष्टि मे शरीर सुख जीवन का एकमात्र उद्देश्य नहीं था। आजकल लोग धन की सेवा करते हैं और उस समय ईश्वर की सेवा करते थे ! अगर मैं यह न सोचता कि आत्मा का अस्तित्व है और अगर मैं यह न मानता कि हम सबमें एक ही आत्मा विराजती है, तो मैं इस पृथ्वी पर जीना नहीं चाहता, बल्कि मर जाना चाहता । शरीर आत्मा के अधीन रहने वाला एक वाहन है। शरीर केवल
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