Book Title: Samasya ko Dekhna Sikhe
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 134
________________ १२० समस्या को देखना सीखें महावीर से पूछा गया- 'भन्ते ! क्या अन्यलिंगी यानी आपके शसन को नहीं माननेवाला, उससे बाहर भी कोई साधु या संन्यासी है ? क्या वह मुक्त हो सकता महावीर ने कहा-हो सकता है । यदि सम्यग्-दर्शन, ज्ञान और चरित्र आए तो किसी भी शासन में रहकर वह मुक्त हो सकता है । उसे 'अन्यलिंगसिद्ध' कहा गया यानी दूसरे सम्प्रदाय में मुक्त होने वाला ।' महावीर से पूछा गया- "क्या मुक्त होने के लिये साधु होना जरूरी है ? क्या कोई गृहस्थ के वेश में मुक्त नहीं हो सकता?" महावीर ने कहा- "हो सकता है, यदि वास्तव में साधु बन जाए, चाहे वेश गृहस्थ का हो ।" इसे 'गृहलिंगसिद्ध' कहा गया यानी गृहस्थ में सिद्ध होने वाला। महावीर से पुनः पूछा गया- "भन्ते ! क्या धर्म की विधिवत् उपासना करने वाला ही मुक्त होता है या और भी कोई मुक्त हो सकता है ?'' उन्होंने कहा- "आत्मा की पवित्रता हो जाए तो विधि-विधानों की कोई जरूरत नहीं । इनके बिना भी मुक्त हो सकता है।" इस प्रकार सिद्ध होने वाले को उन्होने 'असोच्चाकेवली' कहा । 'असोच्चाकेवली' यानी अश्रुत्वा केवली । आप आश्चर्य करेंगे कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में धर्म का एक शब्द नहीं सुना, जो व्यक्ति नहीं जानता, कि धर्म किसे कहते हैं, जो धर्म की व्याख्या और परिभाषा करना नहीं जानता वह व्यक्ति अपने जीवन में मुक्त हो जाता है, केवली और सर्वज्ञ बन जाता है। विश्वधर्म का प्रतिपादन यह है दृष्टि की उदारता । यदि कोई संकीर्ण व्यक्ति होता तो कहता-गृहस्थ जीवन में मुक्त नहीं हो सकता । मेरे सम्प्रदाय के सिवाय दूसरे समप्रदाय में कोई मुक्त नहीं हो सकता । और धर्म के विधि-विधानों, क्रियाकाण्डों को करनेवाला मुक्त नहीं हो सकता है किन्तु अन्नलिंगसिद्धे', 'गिहलिंगसिद्धे' और 'असोच्चाकेवली'---ये तीन शब्द इतने व्यापक हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि महावीर की वाणी में विश्वधर्म के प्रतिपादन की क्षमता है। ___इतने विशाल, व्यापक और महान सिद्धान्त के व्याख्याता, प्रवक्ता और अनुशास्ता भगवान महावीर हुए। उन्हे समझना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए तो इतना दुर्लभ है कि जैसेजैसे मैं महावीर को पढ़ता जाता हूं, ऐसा लगता है कि नई-नई समस्याएं सामने उभरती जाती हैं । समस्या के समाधान के लिए पढ़ता हूं तो पचास समस्याएं और नई सामने खड़ी हो जाती हैं। महावीर के अनन्त चक्षुओं और अनन्त दृष्टियों को समझने के लिये मुझे भी कोई ऐसी दृष्टि प्राप्त हो । जिससे इस दुर्गम दुर्ग को हटाकर, सरलता से उनके पास जाने का अवसर मिल सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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