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महावीर की वाणी
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सकता । आनन्द एक उपासक-श्रावक था और गौतम थे भगवान महावीर के सबसे बड़े शष्य और पहले गणधर । वे चौदह हजार साधुओं में सबसे ज्येष्ठ थे । गौतम आनन्द के घर गए।
आनन्द ने कहा- "भन्ते ! मुझे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है और मैं इतना लोक देख रहा हूं। क्या श्रावक को ऐसा हो सकता है ?"
गौतम ने कहा-'हो सकता है, पर इतना बड़ा नहीं।" “भन्ते ! मुझे ऐसा हो रहा है और मैं साक्षात् देख रहा हूं।"
"यह गलत बात है । ऐसा नहीं हो सकता है । आनन्द ! अनशन में तुम झूठ बोल रहे हो । अतः तुम्हें प्रायश्चित्त करना चाहिए।"
आनन्द ने कहा- “भन्ते ! प्रायश्चित्त जो झूठ बोले उसे करना चाहिए या सत्य बोले उसे ?"
गौतम ने कहा- “जो झूठ बोले उसे करना चाहिए।' आनन्द ने कहा- "तो भन्ते ! प्रायश्चित्त आपको ही करना होगा।"
गौतम के मन में छटपटाहट हो गई। वे महावीर के पास आए और बोले- "भन्ते ! आज मैं आनन्द के पास गया था। उसने किहा कि मुझे इतना अवधिज्ञान हुआ है और मैंने कहा कि इतना हो नहीं सकता । भन्ते ! वह झूठा है या मैं ?" भगवान् ने कहा"तुम झूठे हो । जाओ, आनन्द से क्षमायाचना करो ।"
अगर कोई थोड़ी-बहुत विषमता की दृष्टिवाला होता तो कहता कि 'चलो, कोई बात नहीं, बड़े शिष्य हो, जैसा कह दिया, ठीक है ।' किन्तु महावीर के मन में समता का इतना विकास था कि उनके सामने गौतम और आनन्द का प्रश्न नहीं था । सारा प्रश्न सत्य का था । सत्य के सामने गौतम गौतम नहीं था और आनन्द आनन्द नहीं था । कल्पातीत व्यक्तित्व की कल्पना
यह समतावादी दृष्टिकोण, जिस पर महावीर ने इतने विस्तार से विचार किया, गुरुदेव तुलसी ने नई शैली में प्रतिपादित करना शुरू किया । उन विचारों को थोड़ा-सा मैंने लिखा । वह लेख छपा तो हमारे कई जैन बंधुओं में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई कि महाराज तो साम्यवादी हो गए । मुझे लगा कि क्या साम्यवाद महावीर के सिद्धान्त तक पहुंच सकता है ? जिस साम्यवाद में शासन की सारी व्यवस्था एकाधिनायकवाद, डिक्टेटरशिप की है, जहां दूसरे की जबान पर ताला लगा दिया जाता है, क्या वहां समता की बात हो सकती है ? समता की बात वहां हो सकती है जहां व्यक्ति को इतनी उन्मुक्तता हो कि प्रतिबंध नाम की कोई चीज न हो | आप कहेंगे कि क्या साधु के प्रतिबन्ध नहीं है ? पर यह ज्ञात होना चाहिए कि महावीर ने जो साधना की भूमिका प्रस्तुत की उसमें एक शब्द का प्रयोग किया है—कल्पातीत । कल्पातीत यानी शासनविहीन राज्य जिसकी कल्पना मार्क्स ने की थी । कल्पातीत के लिए कोई कल्प नहीं होता । हमारी साधना की एक वह स्थिति
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