________________
१००
समस्या को देखना सीखें
किया गया है जो आत्यन्तिक, निधि एवं ऐकान्तिक है वही सुख है । भगवान् ने कहा'जेण सिया तेण नो सिया'—जिससे हो सकता है उससे नहीं भी हो सकता । सुख वह नहीं है जिसे हम मान रहे हैं । जो अनैकान्तिक है, जो बाधित है और जिसका निर्वाह अन्त तक नहीं है, वह सुख नहीं है ।
आज ऐसा लगता है कि अपनी ही अविद्या के कारण सुख की अनुभूति से वंचित हो रहे हैं । ध्यान से सुख की अनुभूति होती है । खाने, पीने आदि से वह सुख नहीं । आप सोचेंगे- जो खाता-पीता नहीं, बोलता नहीं, केवल ध्यान करता है, उसे सुख कैसे मिल सकता है ? यह प्रश्न किसी ध्यानी से ही पूछे। जिस आनंद को अनुभव करने की स्थिति है वहां लोग कम जाते हैं, और अपने दिमाग का दरवाजा बंद रखते हैं । व्यक्ति बाहर ही ज्यादा भागता है, अपने अंतर की ओर अभिमुख नहीं होता । उसने स्वयं को भीतर जाने का अवकाश ही नहीं दिया । आज भौतिक विद्याओं में ही मनुष्य का ध्यान अटककर रह गया है । भौतिक विद्याएं आवश्यक हो सकती हैं, किन्तु क्या केवल उन्हीं की उपयोगिता है ? भौतिकता के अतिरिक्त हमें अध्यात्म की खिड़की से भी झांकना है और इसी का नाम है व्रत । व्रत का दर्पण
व्रत नितान्त व्यावहारिक नहीं है । वह गहराई में बहुत आध्यात्मिक है । यह वह कवच है, जो हमें बाहर और भीतर दोनों ओर से रक्षित करता है । व्रत का दर्पण होगा नैतिकता । व्रती व्यक्ति जो स्वयं को नैतिकता के दर्पण में देखता है उससे समाज को कभी नुकसान नहीं होगा । उस व्रत के धरातल में अध्यात्म की भूमिका होगी । व्रत की बात प्रत्येक धर्म में है | महात्मा गांधी ने ग्यारह व्रत दिये । आधुनिक धार्मिक धार्मिक तो बनना चाहते हैं किन्तु व्रती नहीं बनना चाहते । इसीलिए आज धर्म तेजहीन बन गया है । धार्मिक भी जीवन-शुद्धि के लिए नहीं अपितु स्वर्ग के प्रलोभन अथवा नरक के भय से बचने के लिए बनते हैं | धार्मिक का व्रती नहीं बनना धर्म के साथ अन्याय है । व्रती बने बिना कोई आदमी धार्मिक नहीं बन सकता । आज धर्म का प्रथम पाठ पढ़ने की आवश्यकता है । लम्बी-चौड़ी परिभाषाओं और विवेचन में जाने की अपेक्षा व्रतों की सरल पगडंडी चुनना धर्म का प्रथम पाठ है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org