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स्वस्थ समाज की अपेक्षाएं
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होती है, वैसे-वैसे राज्य शक्ति व्यापक हो जाती है । लोग चाहते हैं— राज्य बड़ा न हो
और व्यक्ति इतना छोटा न हो । यह चाह अनुचित भी नहीं है पर इसके लिए आत्मनियन्त्रण की शक्ति का पुनर्मूल्यन अपेक्षित है।
विनय के बिना शिष्टता समाप्त हो जाती है और बड़ों के प्रति छोटों का व्यवहार अशिष्ट हो जाता है । जहां अनुज अपने पूर्वजों का सम्मान नहीं करते,वहां प्रेम की धारा सूख जाती है, जीवन रेगिस्तान बन जाता है । ऐसा न हो, वह सरसब्ज रहे, उसके लिए शिष्टता का पुनर्मूल्यन आवश्यक है ।
धचन की प्रामाणिकता के अभाव में सामाजिक व्यवहार अस्त-व्यस्त हो जाता है। हर आदमी चाहता है हमारा व्यवहार ठीक ढंग से चले । पर उस्के लिए कथनी और करनी की समानता का पुनर्मूल्यन आवश्यक है ।
। इन्द्रिय-संयम के बिना समाज शक्तिहीन बन जाता है । सब लोग चाहते हैं, हमारा समाज और राष्ट्र तेजस्वी रहे, पर उसके लिए इन्द्रिय-संयम का पुनर्मूल्यन अपेक्षित है।
समाज को शक्तिशाली रखना है, व्यवहार को सुशृंखलित रखना है, सरसता को बनाए रखना है व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की लौ को प्रज्वलित रखना है तो उन पुराने मूल्यों को नया रूप देना ही होगा | .. आज के समाज के लिए नये मूल्य होंगे-स्वतन्त्रता, शिष्टता, पारस्परिक विश्वास और संयम-शक्ति ।
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