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समस्या को देखना सीखें
बन गये । जैन-धर्म सिद्धान्ततः जातिवाद को नहीं मानता किन्तु व्यवहार में जैनाचार्यों ने भी अपने यहां ताले लगा दिये । डा० अम्बेडकर जैसे व्यक्ति ने जैनधर्म स्वीकार करने की इच्छा व्यक्त की, प्रयास किया और कई जैनाचार्यों से मिले, परन्तु हम उन्हें भी स्वीकार नहीं कर सके, जबकि भगवान् महावीर ने जातिवाद पर प्रहार किया, अनेक आचार्यों ने जातिवाद के विरुद्ध पचासों ग्रन्थ लिख डाले । इसी प्रकार भाषा का ताला लगा है ।
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जहां समन्वय और एकता की बात थी; वहीं विरोध, झगड़ा और अनेकत्व है । जब तक ये सारी समस्याएं नहीं सुलझेंगी तब तक दूसरी समस्याएं कैसे सुलझेंगी ? सबसे प्रथम है अध्यात्म के द्वारा हम स्वयं के अन्तर की समस्याओं को सुलझाएं। भीतर जाकर समस्याओं का समाधान ढूंढें तो उन सभी समस्याओं का समाधान मिल सकता है । एकांगीपन को छोड़कर दोनों आंखों से देखें । बाहर का बाहर और भीतर का भीतर ढूंढें । यही सही समाधान है ।
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