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समस्या को देखना सीखें
"छोकरे ! तूने मेरा क्या बिगाड़ लिया ?" शनि ने हँसकर कहा- "भगवन् ! भला इससे अधिक कष्ट क्या दे सकता था कि आप पूरे साढ़े सात वर्षों तक भूखे और प्यासे रहे !" जब शंकर भी परिस्थिति से प्रभावित हो गए तो साधारण व्यक्ति की क्या बात? कठिन है अप्रभावित रहना
___ मन को परिस्थितियों से अप्रभावित रखना कठिन है । कोई आदमी सम्मान देता है, प्रशंसा करता है तो गर्व का भाव आ जाता है । इसके प्रतिकूल कहीं अपमान हो जाए अथवा आलोचना हो तो क्रोध का भाव आता है । यह हर्ष और क्रोध स्वयं का नहीं, बाहर से आता है। ये बाहरी नाले और सुराख जब तक बन्द नहीं होंगे, शान्ति नहीं मिलेगी । इन आश्रवों-छेदों और खिड़कियों को जब तक बन्द नहीं करेंगे, तब तक दूसरों के हाथ के खिलौने बने रहेंगे। हमारे भाग्य की कुंजी दूसरे के हाथों में चल रही है । टेप-रेकार्डर बोलता है किन्तु यह आवाज उसकी नहीं, किसी दूसरे व्यक्ति की है । ठीक वही गति हमारी है।
हम स्वयं अपने भाग्य के स्वामी नहीं हैं । अपने आपको स्वयं के बटखरों, गजों से तोलना-मापना नहीं जानते । दूसरों के ही बटखरों से तोलते हैं | दूसरों के कहने से ही अपने को अच्छा या बुरा मान लेते हैं । अच्छे-बुरे का मानदंड अपना नहीं, लोग जैसा कहते हैं व्यक्ति वैसा ही बन जाता है। जब तक मनुष्य दूसरों के इशारे पर नाचता रहेगा तब तक शान्ति की कल्पना नहीं हो सकती । इसलिए दूसरों की इच्छा और इशारे पर नाचना बंद करना जरूरी है। विषम भाव से बचें
जब तक समता की साधना नहीं होगी, तब तक धर्म और शान्ति प्राप्त नहीं की जा सकती । भगवान् महावीर ने सामायिक की बात कही, समता की साधना का उपदेश दिया । हमें वैषम्य से बचना है, तभी शान्ति की बात सहज होगी। यह बात कहने में सुगम है किन्तु करना कठिन है । शेर की गुफा में जाने से भी अधिक कठिन है विषम भाव से बचना । कहा गया—
__ “लाभा-लाभे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा ।
समो निन्दा पंससासु, तहा माणावमाणओ ।" -लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, मान-अपमान आदि में समभाव रखो | बात ठीक लगती है, किन्तु व्यवहार में देखें कि क्या स्थिति है ? अनुकूल में प्रसन्नता, प्रतिकूल में दुःख होता है और मनःस्थिति में परिवर्तन हो जाता है । प्रतिकूल से निराशा, हीन भावना, दयनीयता आती है, जिससे अनेक घटनाएं घटित होती हैं । आत्महत्या जैसी भयावह स्थिति पैदा हो जाती है । लाभ-अलाभ में समान रहना कठिन है। राम को दशरथ ने राज्य देने
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