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जीवन की तुला : समता के बटखरे
एक आदमी गाय रखता है, उसे घास खिलाता है; दूध दुहकर गर्म करता है और जमाता है । दही का फिर बिलौना करता है । इतना कार्य क्यों करता है ? यह लम्बी और दीर्घकालीन प्रक्रिया नवनीत के लिए की जाती है । स्नेह और मक्खन के लिए ही यह परिश्रम किया जाता है। जीवन में खाने-पीने, श्रम आदि की सारी लम्बी प्रक्रिया इसलिए करते हैं कि सुख और शान्ति से जी सकें । जीवन का नवनीत
जीवन का नवनीत है—शान्ति । जिन्दगी का मक्खन है—मन की शान्ति । हम धर्म, भगवान् और शास्त्रों के पीछे शान्ति के लिए ही जाते हैं । हज़ारों मील की यात्रा करके भी व्यक्ति वहां पहुंच जाता है, जहां शान्ति मिलने की आशा हो, समाधि मिलती हो । शान्ति नहीं ही मिलती है ऐसा नहीं कहा जा सकता, किन्तु शान्ति का प्राप्त होना सहज नहीं है क्योंकि शान्ति के लिए जो तपस्या करनी चाहिए, व्यक्ति उसे कर नहीं पाता। चार मास की तपस्या करना सरल बात है किन्तु चार मिनट के लिए भी समभाव में रहना कठिन बात है।
मन में उच्चावच भाव आते हैं, उतार-चढ़ाव की स्थिति पैदा होती है तो 'शान्ति भंग हो जाती है । यह परिस्थितियों के कारण आता है । व्यक्ति स्वयं में स्थित नहीं है, दूसरों से प्रभावित होता है । रात होते ही नींद आने लगती है, सुबह होते ही चाय-जलपान की आवश्यकता महसूस हो जाती है। वह क्षेत्र, व्यक्ति, मान, अपमान, सम्मान से प्रभावित होता है । यदि इनसे व्यक्ति प्रभावित नहीं होता तो कठिनाई नहीं होती । प्रभावित हैं शंकर भी
शंकर के पास एक बार शनिदेव आया और बोला, “भगवन् ! अब आपकी राशि पर साढ़े साती के साथ आने वाला हूँ।" शनिदेव चला गया लेकिन शंकर को उसके कथन से अपमान का अनुभव हुआ। उन्होंने शनि की चुनौती स्वीकार कर ली और सोचा कि मैं गुफा में जाकर साढ़े सात वर्षों तक निरन्तर तपस्या और साधना में लग जाऊंगा, फिर देखें वह मेरा क्या बिगाड़ लेता है । शंकर ने साढ़े सात वर्षों तक एकांत में साधना की, खाना-पीना कुछ भी नहीं किया । समय पूरा होने पर शनि आया तो शंकर ने कहा
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