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समस्या को देखना सीखें
है? पांच इंद्रियां आपके पास हैं। आपने रोटी को आंख से देखकर जाना, अंधेरे में स्वाद से जाना, स्पर्श से जाना, रोटी तोड़कर शब्द से जाना और सूंघकर भी जान लिया । किन्तु फिर भी रोटी के एक पर्याय को जाना है, समग्रता से नहीं । उसमें ठंड, गर्म, स्टार्च आदि कितना क्या है,यह जानना तो बहुत बाकी है। सापेक्षता की नीति
हमारा ज्ञान जब विकसित होता है तब हम इन्द्रियों का ज्ञान विकसित कर लेते हैं लेकिन प्रथम बार हम एक इन्द्रिय से वस्तु के पर्याय को जानते है, समग्र वस्तु को नहीं जान सकते । वस्तु के एक धर्म का विश्लेषण कर अन्य को गौण कर देते हैं । आचार्य अमृतचंद्र ने लिखा है- एक ग्वालन दोनों हाथों से बिलौना करती है । एक हाथ आगे ले जाती है, फिर दूसरा पीछे लाती है । इस प्रकार आगे-पीछे का क्रम चलता है तब मक्खन मिलता है।" यही सापेक्षता की नीति है । एक वस्तु का धर्म सामने आ जाता है, दूसरा गौण कर देते हैं । एक को गौण करना, दूसरे को आगे ला देना; एक को आगे लाना. दूसरे को पीछे कर देना, यह है सापेक्षता का दृष्टिकोण ।
दुनिया में ऐसा कोई वस्तु-धर्म नहीं, जिसके द्वारा सामंजस्य नहीं बैठाया जा सके । सापेक्षवाद प्रस्तुत वातावरण के लिए ज्यादा अनुकूल है । बिना सापेक्षवाद के नाम से ही अपने आप यह विकसित होता जा रहा है ।
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