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समस्या को देखना सीखें
दृष्टियों से देखना । नैयायिक और वैशेषिक दर्शन ने भी माना है कि वस्तु में अनेक धर्म होते हैं । जैन-दर्शन उससे सहमत है किन्तु पूर्णतः नहीं, क्योंकि एक वस्तु में केवल अनन्त धर्म ही नहीं होते अपित विरोधी युगलात्मक अनन्त धर्म होते हैं, जैसे नित्य-अनित्य, सामान्य-विशेष, सत्-असत् आदि । यह कितनी विरोधी बात लगती है, एक ही वस्तु ठंडी भी है और गर्म भी, प्रकाश भी है और अंधकार भी । एक ही आदमी अच्छा भी है और बुरा भी । हर प्रकृति में यह विरोधी बात मिलती है । उदाहरण के लिए एक डाकू को लिया जा सकता है। डाकू क्रूर और हत्यारा होता है परन्तु अपने बच्चे के प्रति दयालु भी होता है । वह अधार्मिक होता है और डाका डालता है लेकिन डाका डालने से पहले अपनी इष्टदेवी की पूजा भी करता है । इसीलिए कहा गया— वस्तु में अनन्त विरोधी युगलात्मक धर्म होते हैं । जीवन में असामंजस्य, विसंगतियां और उतार-चढ़ाव हैं । ये विरोधी धर्म अलग-अलग नहीं होते, एक ही व्यक्ति में होते हैं । इसे स्वीकार करने की दृष्टि ही है अनेकान्त । इस अनेकांत का ही फलित है सह-अस्तित्व । अपेक्षा दृष्टि
सह-अस्तित्व की बात आज तो विभिन्न क्षेत्रों में चल रही है । समाजनीति और राजनीति में भी इसकी चर्चा है और साम्यवादी विचारधारा में भी सह-अस्तित्व का अस्तित्व है । साम्यवादी विचारधारा में भी स्याद्वाद का विचार फलित हुआ ।
एक राजा की लड़की की कहानी है । उस लड़की ने अपने पिता से हठ किया कि रेखला नामक लड़के को मारना ही होगा । यदि वह जीवित रहा तो मैं मरूंगी क्योंकि हम दोनों एक साथ नहीं जी सकते । या तो वह जीयेगा या मैं जीवित रहूंगी। यह आग्रही
और एकांगी मनोवृत्ति है । अनेकांत इसे गलत मानता है । ठंड और गर्मी दोनों सापेक्ष हैं। अपेक्षा से देखें तो एक ही वस्तु में विरोधी बात समझ में आ जाती है । हमारा सारा प्रतिपादन सापेक्षता के आधार पर होता है | जैन-दर्शन पर उसके लिए काफी प्रहार भी किये गये किन्तु आईन्स्टीन के बाद तो सापेक्षवाद की बात स्वीकार कर ली गई है । एक अंगुली का उदाहरण लें । वह अपेक्षा की दृष्टि से दूसरी अंगुली से बड़ी है तो तीसरी से छोटी भी । छोटापन और बड़प्पन- दोनों इसी में विद्यमान हैं। सापेक्षता का निदर्शन
सापेक्षवाद के बिना सत्य की दृष्टि नहीं आती, अनाग्रह नहीं पनपता । आईन्स्टीन की पत्नी ने कहा--- "मुझे सापेक्षवाद समझाओ क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है।" आईन्स्टीन ने उसे समझाते हुए कहा- “एक व्यक्ति अपनी प्रेयसी के साथ बात करता है तो घंटा पांच मिनट के समान लगता है किन्तु वही व्यक्ति जब चूल्हे की आंच के सामने बैठता है तो उसे पांच मिनट का समय घंटाभर से भी ज्यादा लगने लगता है ।'' पुराने जमाने की बात लें । भोज के दरबार में चर्चा चली-कालिदास हर समस्या को श्रृंगार
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