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विश्व राज्य या सहअस्तित्व
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अन्तर्राष्ट्रीय सरकार की स्थापना उपनिवेश और शस्त्रीकरण की बढ़ती हुई होड़ के अंत का एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है ।
कम हों विभाजक रेखाएं
विभाजन उपयोगिता के लिए होता है पर उसकी जितनी रेखाएं खींची जाती हैं, उतनी ही दूरी बढ़ जाती है। विश्व शान्ति के लिए यह बहुत अपेक्षित है कि इन विभाजनरेखाओं को जितना संभव हो सके, उतना कम करने का प्रयत्न किया जाए ।
यातायात के साधनों की अविकसित दशा में अनेक राष्ट्र, अनेक जातियां और शासन-प्रणालियां अपनी-अपनी परिधि में चलती थी। आज के यातायात के विकसित साधनों ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। उसकी दूरी सिमट गयी है । परिधियां समाप्त हो गई हैं । इस नई स्थिति में एक राष्ट्र, एक जाति और एक शासन-प्रणाली के सिद्धान्त का बहुत महत्त्व बढ गया है। इसका भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखाई दे रहा है । इस कल्पना को मूर्त रूप देने में कम उलझनें नहीं हैं, किन्तु विभाजन की रेखाओं को मिटाए बिना उलझनों का अंत ही नहीं आ सकता तब उन-उन उलझनों को सुलझाने के सिवा शान्ति के पक्ष में और चारा ही क्या है ?
शान्ति का आध्यात्मिक सिद्धान्त
विश्व - राज्य का सिद्धान्त भी मेरी दृष्टि में राजनीतिक सिद्धान्त है । शान्ति का आध्यात्मिक सिद्धान्त सह-अस्तित्व का विचार है । अनेक धाराएं भी सह-अस्तित्व का विकास होने पर एक धारा की भाँति व्यवहार कर सकती हैं। यह चार आना राजनैतिक पक्ष है और बारह आना आध्यात्मिक पक्ष है । और गहराई में उतरें तो अनुभव होगा कि यह सोलह आना आध्यात्मिक पक्ष है । इस पक्ष की पुष्टि के लिए आध्यात्मिक सिद्धांतों को विकसित और पुष्ट करना आवश्यक है ।
सह-अस्तित्व की सिद्धान्त - श्रृंखला इस प्रकार होगी :
शान्ति का आधार
: व्यवस्था
: सह-अस्तित्व
: समन्वय
सत्य
: अभय
: अहिंसा
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व्यवस्था का आधार
सह-अस्तित्व का आधार
समन्वय का आधार
सत्य का आधार
अभय का आधार
अहिंसा का आधार अपरिग्रह का आधार
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अपरिग्रह
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