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पूज्य की पूजा का व्यतिक्रम न हो
राजनीतिक हितों से ऊपर उठे
शिक्षा और आर्थिक विकास ने निम्न कहलाने वाले वर्ग में प्रतिक्रिया को जन्म दिया और उसे अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता । उस प्रतिक्रियात्मक वातावरण में हिन्दू समाज की एकता सुरक्षित रखने के लिए महात्मा गांधी ने अभिनव प्रयत्न शुरू किए । उन्होंने महावीर और बुद्ध की परंपरा को आगे बढ़ाया । निम्न वर्ग के लिए सामाजिक समानता की भूमिका तैयार की । जातीय घृणा और छुआछूत को दूर करने के अनेक संकल्प और प्रारूप प्रस्तुत किए | इस प्रयोग श्रृंखला की एक कड़ी है 'हरिजन' शब्द का पुनरुच्चार । महात्मा गांधी से पहले भक्त के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग संतों ने किया, वह निम्न वर्ग के प्रयोग में आने लगा । हम जाति व्यवस्था को स्वीकार नहीं करते, इसलिए हमारी दृष्टि में कोई भी जाति उच्च या निम्न नहीं है । किन्तु जिस समाज-व्यवस्था में उच्च और निम्न की कल्पना है, उसमें उच्च और निम्न शब्दों का व्यवहार भी है। इस व्यवहार को बदलने के लिए वाचक शब्दों को बदलना भी जरूरी लगा और वैसा किया । हमारी दृष्टि में समाज को विभक्त करने वाला कोई भी शब्द समानता की भूमिका को पुष्ट नहीं करता । वह दो जातियों अथवा वर्गों में भेदरेखा खींचता है | जाति और वर्ग की मानसिकता जड़ जमाए हुए है । उसे एक झटके में उखाड़ देना संभव नहीं रहा । अनेक युगों में अनेक प्रयत्न हुए हैं। अनेक महापुरुषों ने उनकी जड़ों पर मृदु या कठोर प्रहार किए हैं। उन प्रयत्न करने वालों में महात्मा गांधी एक हैं । राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर ही यथार्थ
को देखा जा सकता है । राजनीति, चुनाव और सत्ता- राष्ट्रीय विकास और प्रगति के लिए केवल यह त्रिकोण ही पर्याप्त नहीं है । उसके लिए त्याग, संयम, नैतिकता और चरित्र का चतुष्कोण भी जरूरी है | पूज्य की पूजा का व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए।
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