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समीचीन बने धन के प्रति दृष्टिकोण
प्रत्येक आदमी सुख से जीना चाहता है । सुख का साधन है सुविधा । सुविधा का साधन है अर्थ । अर्थ के प्रति बहुत आकर्षण है । वह इसलिए है कि अर्थ से जो सुविधा की सामग्री चाहिए, वह मिल जाती है । सुविधा के प्रति आकर्षण इसलिए है कि उससे सुख का अनुभव होता है | शिखर की सच्चाई यह है कि अर्थ के प्रति आकर्षण बहुत है। तलहटी की सच्चाई यह है कि सुख के प्रति बहुत आकर्षण है । आर्थिक स्पर्धा का युग
अर्थ के अभाव में जीवन की आवश्यकताएं ठीक पूरी नहीं होती । भोजन, मकान, कपड़े, शिक्षा और चिकित्सा---इन सबकी सम्यक् पूर्ति आर्थिक विकास के द्वारा ही हो सकती है । आर्थिक स्पर्धा का युग है । उसका प्रवर्तन सुविधावाद ने किया है । एक व्यक्ति के पास अर्थ है, उसका लड़का अच्छे स्कूल में पढ़ सकता है । दूसरे व्यक्ति के पास इतना अर्थ नहीं है कि वह अपने लड़के के लिए शिक्षा की अच्छी व्यवस्था कर सके । चिकित्सा के क्षेत्र में भी यही समस्या है। इस समस्या की भूमि में ही आर्थिक स्पर्धा के बीज अंकुरित होते हैं।
___ आर्थिक विकास का नियम आर्थिक स्पर्धा को मुक्त आकाश देता है। अधिक इच्छा, अधिक स्पर्धा और अधिक उत्पादन आर्थिक विकास के मुख्य स्रोत हैं। अभाव या गरीबी की समस्या से निपटने के लिए इनका होना अति आवश्यक है।
अपरिग्रह का सिद्धांत है— इच्छा का संयम, स्पर्धा पर नियंत्रण | क्या यह सिद्धांत गर्र बी की ओर ले जाने वाला नहीं है ? समाज के पिछड़ेपन को बनाए रखने का हेतु नहीं है ? अर्थशास्त्र और अपरिग्रह के सिद्धान्तों और नियमों में प्रत्यक्ष विरोधाभास है। अर्थशास्त्र के नियम सामाजिक विकास की कल्पना से जुड़े हुए हैं । अपरिग्रह के नियम अन्तर्जगत् के विकास की कल्पना से जुड़े हुए हैं | आजीविका, शिक्षा और चिकित्सा की सम्यक् व्यवस्था के बिना आंतरिक विकास का सिद्धांत कितना व्यावहारिक हो सकता है, यह जटिल प्रश्न है । इसका उत्तर खोजे बिना अपरिग्रह के प्रति वह आकर्षण पैदा नहीं किया जा सकता, जो आकर्षण अर्थ के प्रति है ।
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