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समीचीन बने धन के प्रति दृष्टिकोण
खतरा है अतिवाद से
अर्थ सुविधा और सुख का साधन है इसलिए उसका आकर्षण कभी कम नहीं होता। अपरिग्रह के सिद्धांत से उसको कोई खतरा नहीं है । उसे खतरा है अपने अतिवाद से । वह अतिवाद ही अपरिग्रह के सिद्धांत को समाने की एक सशक्त प्रेरणा है। संग्रह अर्थ के प्रति होने वाले अति आकर्षण का परिणाम है । सुविधा और सुख के लिए जितना चाहिए उतने अर्थ का संग्रह मनुष्य करता है तो आर्थिक संग्रह की प्रतिक्रिया हिंसा के रूप में नहीं होती है। कुछ लोग सामाजिक संपदा का अर्थहीन और अनावश्यक उपयोग करते हैं। कुछ लोग जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी उसका उपयोग नहीं कर पाते । यह स्थिति अतिसंग्रह से उपजती है । अर्थ का मूल स्रोत
एक ज्वलंत प्रश्न है अर्जित राशि का उपयोग कैसे करें ? अर्थ का अर्जन व्यक्ति अपने श्रम से करता है, इसलिए उसका उपयोग अपने लिए ही करे, यह एक पहलू है । इसका दूसरा पहलू यह है कि अर्थ का मूलस्रोत समाज है, इसलिए उसका उपयोग समाज के लिए होना आवश्यक है । कितना अपने लिए और कितना समाज के लिए, इसका कोई सर्वसम्मत मानदण्ड नहीं बन पाया है फिर भी वास्तविकता से आंख मिचौनी नहीं करनी चाहिए | अर्जित अर्थ का उपयोग केवल अपने लिए ही हो, यह अति स्वार्थ है, सामाजिक न्याय का अतिक्रमण है । सामाजिक श्रम से अर्थ का अर्जन करे और उसका उपभोग केवल अकेला करे । अर्थ का यह सबसे अधिक अंधकारमय पक्ष है उपभोग का सामाजिक न्याय है— संविभाग-बांट-बांट का खाना । यह सिद्धान्त किसी धर्म, कर्म से जुड़ा हुआ नहीं है । इसका मूल उत्स है, सामाजिक न्याय । बड़प्पन का काल्पनिक मानदण्ड
वर्तमान विश्व में अनेक उद्योगपति अथवा धनपति ऐसे हैं, जो अर्थ का प्रचुर मात्रा में अर्जन करते हैं, उसका व्यक्तिगत उपयोग एक निश्चित सीमा में करते हैं, शेष अर्थ का उपयोग समाज कल्याण के लिए करते हैं । यह सामाजिक न्याय है । इस स्थिति में अर्थ का संग्रह प्रतिक्रियात्मक हिंसा को जन्म नहीं देता ।
समाज में प्रतिक्रियात्मक हिंसा अधिक हो रही है । उसका हेतु है बड़प्पन का काल्पनिक मानदंड । जिसके पास प्रचुर धन है, ह उसका प्रदर्शन करता है, अपव्यय करता है । मैंने सुना- एक महिला ने विवाह के अवसर पर एक करोड़ की पोशाक पहनी । फिर पढ़ा- दुनिया की सबसे महंगी पोशाक आठ करोड़ की है । एक विवाह मंडप पर पचास लाख रुपए या उससे भी अधिक रुपयों का व्यय, एक शादी में पांच करोड़ से पैंतीस करोड़ तक का व्यय । यह है संग्रह का दुरुपयोग । इससे प्रतिक्रियात्मक हिंसा क जन्म होता है।
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