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समस्या को देखना सीखें
विस्मृति ही राष्ट्रीय एकता विखण्डन करती है । उसकी स्मृति अथवा चेतना जागृत रहे, तो राष्ट्रीय एकता कभी विखण्डित नहीं हो सकती । अनेक सम्प्रदायों के तुमुलरव में धर्म की आवाज सुनाई नहीं देती । इस दशा में सम्प्रदाय-विहीन या मानवधर्म की आवाज को बुलन्द करना सचमुच एक सूझ-बूझ पूर्ण और साहसिक कदम है ! विरोध राजनीति की भाषा से
अन्नामलै युनिवर्सिटी में पूज्य गुरुदेव ने नैतिक मूल्यों के विकास पर एक प्रवचन किया । उन दिनों तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी आन्दोलन पूरे वेग पर था और उस युनिवर्सिटी के छात्र उसकी अगुवाई कर रहे थे । कुलपति ने अनुरोध किया, आप अंग्रेजी में प्रवचन करें । गुरुदेव ने अस्वीकार कर दिया । उनका पुनः अनुरोध था- आप संस्कृत में प्रवचन करें | गुरुदेव ने उसे भी नहीं स्वीकारा और साफ-साफ कहा- यदि प्रवचन होगा तो हिन्दी में होगा अन्यथा नहीं होगा । आखिर हिन्दी में प्रवचन हुआ । प्रवचन का प्रारंभ इरः वाक्य से हुआ— मैं तमिल नहीं जानता । यदि जानता तो तमिल में प्रवचन करता । अप मेरी इस असमर्थता को क्षमा करेंगे । भाषा पर नहीं, भावना पर ध्यान देंगे।
भावना की अजस्रधारा में भाषा का प्रश्न प्रवाहित हो गया । पुनः एक बार और प्रवचन करने का आग्रह छात्रों ने किया । सब आश्चर्य की मुद्रा से देख रहे थे । कुलपति स्वयं आश्चर्य निमग्न थे । छात्रों ने कहा- आपकी भाषा हृदय की भाषा है । इससे हमारा कोई विरोध नहीं है । हमारा विरोध केवल राजनीति की भाषा से है । संदर्भ चुनाव का
राजनीति ने चाहे अनचाहे राष्ट्रीय एकता पर काफी प्रहार किए हैं । चुनावी राजनीति भेद के अणुओं से निर्मित हुई है और उसकी परिणति है विखण्डन । जातीय एकता, साम्प्रदायिक सद्भावना के सारे प्रयत्न चुनाव के दिनों में धराशायी हो जाते हैं । जातिवाद और सम्प्रदायवाद को उन दिनों जितना उभारा जाता है, उतना शायद कभी नहीं । इस सचाई का अनुभव कर पूज्य गुरुदेव ने एक गोष्ठी का आयोजन किया ।
२२ दिसंबर १९५९ का दिन | कांस्टीट्युशन क्लब, कर्जन रोड, नई दिल्ली । अखिल भारतीय राजनैतिक दलों के नेताओं की परिषद का आयोजन । आयोजक अणुव्रत समिति । सन्निधि गुरुदेव श्री तुलसी की । उसमें भाग ले रहे थे, चुनाव मुख्यायुक्त श्री सुकुमार सेन, कांग्रेस अध्यक्ष श्री यू० एन० ढेबर, साम्यवादी नेता श्री ए० के० गोपलन, प्रजा समाजवादी नेता आचार्य जे० बी० कृपलानी आदि ।
पूज्य गुरुदेव ने अपने आदि वचन में कहा-~-यदि चुनाव में अनैतिक आचरण हो तो उससे फलित होने वाला जनतंत्र पवित्र नहीं हो सकता । अणुव्रत आन्दोलन का लक्ष्य है नैतिकता या चरित्र की प्रतिष्ठा । चुनाव में भी नैतिकता को बल मिले, इस उद्देश्य से आज की परिषद् आयोजित है । किसी राजनीतिक दल या पक्ष से हमारा संबंध नहीं
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