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एकता के प्रयत्न
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है ! आदि वचन के अनन्तर गुरुदेव ने चुनाव की आचार-संहिता सबके सामने रखी ।
चुनाव मुख्यायुक्त श्री सुकुमार सेन ने कहा- मुझे बहुत प्रसन्नता है कि इस परिषद् में सब राजनैतिक दलों के नेता सम्मिलित हुए हैं । चुनाव में हमारे देश के वे आदर्श प्रतिबिम्बत हैं, जिन्हें हम सदियों से मानते आ रहे हैं। उन्होंने आचार्यजी से निवेदन किया कि मतदाता की आचार-संहिता में दो व्रत जोड़े जाएं :
१. मैं वोट अपने अंतरात्मा की आवाज के अनुसार दूंगा, देश के लाभ को सोचते
हुए दूंगा। २. मैं उस उम्मीदवार को वोट नहीं दूंगा, जो उम्मीदवार की आचार-संहिता के
लिए कृतसंकल्प नहीं है ।
कांग्रेस अध्यक्ष श्री ढेबर ने साध्यशुद्धि के साथ साधनशुद्धि में भी विश्वास व्यक्त किया और विश्वास दिलाया कि हमारा दल इस कार्य में पूरा सहयोग करेगा । साम्यवादी नेता श्री गोपालन संकल्प की भाषा में बोले- यदि मैं अपनी पार्टी की ओर से चुनाव लडूंगा तो इन नियमों के पालन की प्रतिज्ञा करता हूं | मेरी पार्टी में इस आचार-संहिता के प्रतिकूल कोई व्यवहार देखे तो हम उसे रोकने का प्रयत्न करेंगे। श्री गोपालन ने सुझाव दियाचुनाव अधिकारियों के लिए भी आचार-संहिता होनी चाहिए, जैसे—मैं चुनाव कार्य में सचाई व नैतिकता का व्यवहार करूंगा ।
__ आचार्य कृपलानी ने आचार-संहिता का स्वागत किया, अपनी ओर से एक सुझाव भी प्रस्तुत किया । उम्मीदवार और मतदाता के लिए जैसे आचार-संहिता हैं, वैसे ही दल की कार्यकारिणी के सदस्यों तथा मंत्रियों के लिए भी आचार-संहिता होनी चाहिए । हम जातीयता व साम्प्रदायिकता के आधार पर टिकट नहीं देंगे तथा चुनाव में सरकारी साधनों का उपयोग नहीं करेंगे । परिषद् में प्राप्त सुझावों को जोड़कर आचार-संहिता का समर्थन किया गया ।
सत्ता और संपत्ति के प्रति जितना आकर्षण है, उतना नैतिकता के प्रति नहीं है । इसीलिए इस आचार-संहिता का अनुपालन नहीं हुआ । फिर भी इस प्रयत्न का अपना मूल्य है । धर्म के मंच से जनतंत्र की एक जटिल समस्या का समाधान प्रस्तुत करना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण घटना है । समस्या हिंसा और परिग्रह की
हिंसा की प्रबलता होती है, राष्ट्रीय एकता का विखण्डन । समाज, राष्ट्र या मानव उन्हें जोडने का एक ही साधन है और वह है अहिंसा । असंतुलित अर्थव्यवस्था हिंसा को बढ़ावा देती है । हिंसा और अर्थसंग्रह- दोनों में तादात्य संबंध है । हिंसा को परिग्रह की भाषा में और परिग्रह को हिंसा की भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है । परिग्रह और हिंसा की समस्या को केवल दण्डशक्ति से नहीं सुलझाया जा सकता ।
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