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अभय
भगवान् महावीर को ग्रन्थ से अतीत, अभय और अनायु कहा गया है। वे अभय थे इसीलिए उन्होंने अभय का बहुत सुन्दर उपदेश दिया। प्रश्न-व्याकरण सूत्र में उसका जितना मर्मभेदी वर्णन है, उतना अन्यत्र विरल स्थानों में ही होगा। अभय भगवान् महावीर का पहला सूत्र था, क्योंकि वे अहिंसक थे । अहिंसक अभय होता है । जो अभय नहीं होता, वह अहिंसक भी नहीं होता । अभय शब्द हमारे लिए सुपरिचित है । क्योंकि हम साधु हैं, साधना का पथ स्वीकार कर रखा है। साधना यानी मोह का विलीनीकरण । भय मोह से पैदा होता है । वास्तविक भय कम होता है, अधिकांश भय कल्पना-जनित होता है। सन्देह के कारण भय जाग जाता है। मार्ग में गाय खड़ी है । पांच-सात व्यक्तियों को आते देख वह रौद्र रूप धारण कर लेती है । उसके मन में सन्देह होता है कि ये मेरे पर आक्रमण करने आ रहे हैं ।
पशु ही नहीं, मनुष्य भी आशंका से दूसरों की हिंसा कर देता है । 'अमुक व्यक्ति मेरा अनिष्ट करेगा'—इस भावी कल्पना में उलझकर वह दूसरों की हिंसा करता है । भय के हेतु
भय क्या है ? अनिष्ट की आशंका उत्पन्न करनेवाली सामग्री । योग और वियोग की आशंका, अनिष्ट और अप्रियता की आशंका ही भय पैदा करती है । ममत्व के साथ भी उसका गहरा संबंध है । स्थानांग सूत्र में भय की उत्पत्ति के चार कारण बतलाये गये
१. हीनसत्त्व- हीनसत्त्वता; दुर्बलता । २. भय वेदनीय- संस्कारों का विपाक । ३. मति- भय का मनन । ४. तदर्थोपयुक्तता--- भय के चिन्तन में एकाग्रता ।
चार कारणों में एक कर्मज है और तीन नोकर्मज हैं। हर व्यक्ति में दुर्बलता होती है, कोई परिपूर्ण नहीं होता । भय अपनी दुर्बलता के कारण ही सताता है । भय के परिणाम
भय के दो परिणाम बहुत स्पष्ट हैं-- रोग और सुख की हानि । सामाजिक जीवन
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