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चिन्तन का क्षितिज
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कि सोने की तुलना में मिट्टी का मूल्य हजार गुना अधिक है। सोना आदमी को मार सकता है, पर मिट्टी ने न जाने कितने मरने वालों को उबारा है । फिर भी मिट्टी का मूल्य नहीं आंका जा सकता क्योंकि वह सहज है, सुलभ है । हम रोटी का मुल्यांकन करते हैं क्योंकि रोटी हमारा जीवन है । परंतु जो सचमुच जीवन है, उसका हम कभी भी मूल्यांकन नहीं करते । वह है प्राण । वह है हमारा स्वास्थ्य । साधना की पद्धति मूल्यांकन का ही मार्ग
अध्यात्म और संप्रदाय
जहां मतभेद का प्रश्न है वहां हजार संप्रदाय हो जाते हैं । लोग कहते हैं—संप्रदाय न हों । मैं इस भाषा में सोचता हूं कि हजारों संप्रदाय हों । हर व्यक्ति का एक संप्रदाय हो । अध्यात्म ही एक ऐसा विकल्प है जहां कोई संप्रदाय-भेद नहीं है । साधना और अध्यात्म में कोई संप्रदाय-भेद नहीं होता ।
साधना का सबसे बड़ा योग है ध्यान | ध्यान का अर्थ है--निर्विकल्पता, जहां कोई विकल्प नहीं, विवाद नहीं । इसमें मतवाद का प्रश्न ही नहीं उठता । साधना में मुंह बंद होता है, कान बंद होते हैं, आंखें बंद होती हैं, फिर वहां विवाद का प्रश्न ही कैसे उठेगा ? हमारी जो नैतिकता की पूंजी है, उसकी मूल पृष्ठभूमि है— अध्यात्म । अध्यात्म के आधार पर ही नैतिकता विकसित हो सकती है। आज हमारा सारा ध्यान शरीर-केंद्रित हो गया । मूल है मन । उसकी हम उपेक्षा करते चले जा रहे हैं। हमें सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है--मन आत्मा और प्राण
दो वस्तुएं हैं--आत्मा और प्राण । एक है आत्मशक्ति और एक है प्राणशक्ति । एक है प्राणबल और एक है आत्मबला । हमारा लक्ष्य है---- आत्मोपलब्धि । हम आत्मा के मूल स्तर तक पहुंचना चाहते हैं, आत्मा को पाना चाहते हैं, मूल चेतना तक पहुंचना चाहते हैं । यह है हमारा मूल लक्ष्य । इससे पहले आता है प्राण । उसका स्थान इससे पूर्व है । आत्मा तक कौन पहुंच पाता है, आत्मा तक वहीं पहुंच पाता है, जो प्राणवान् है, जो शक्तिशाली है । जिसका मनोबला ऊंचा है, जिसका संकल्प-बल प्रबल है वह पहुंच सकेगा आत्मा तक । जिसकी इच्छाशक्ति प्रबल है वह आत्मा तक पहुंच पाएगा । जिसका मनोबल क्षीण है, जिसका संकल्पबल क्षीण है, जिसकी इच्छाशक्ति, प्राणशक्ति दुर्बल है, जो वीर्यहीन है वह कभी आत्मा को नहीं पा सकता । आत्मा को पाने के लिए प्राण को शक्तिशाली बनाना जरूरी है । जो जाप का स्तर है, वह प्राण के स्तर पर चलने वाला क्रम है । यह प्राण को शक्तिशाली बनाता है । प्राण हमारी विद्युत् शक्ति होती है । कोई भी प्राणी ऐसा नहीं होता । जिसमें यह शक्ति न हो । हमारी सारी सक्रियता, चंचलता, हमारा उन्मेष और निमेष, हमारी वाणी, हमारा चिंतन, हमारी गति, हमारी दीप्ति, हमारा
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