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लोकतन्त्र और नागरिक अनुशासन
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प्रयल का थोड़ा संकोच- यह जनतन्त्र का आकार बनता है। आज का जनतन्त्र इस आकार का नहीं है, इसलिए जनता और शासन– दोनों ओर से अधिक दबाव आ रहा
कैसा हो विरोध का स्वरूप ?
मैं नहीं कहता कि जनता का दबाव कम हो और सरकार का दबाव बढ़े, या सरकार का दबाव कम हो और जनता का दबाव बढ़े। ये दोनों विकल्प जनतन्त्र के लिए स्वस्थ नहीं हैं । उसकी स्वस्थता इसमें है कि दोनों ओर का दबाव घटे | जनतन्त्र में निरंकुश शासक और निरंकुश जनता दोनों खतरनाक होते हैं । इस खतरनाक स्थिति के लक्षण अनेक घटनाओं में प्रकट हो रहे हैं। दुकानों की लूट, अग्निकाण्ड, शस्त्रों का प्रयोग, पथराव और गोलियों की बौछार—ये अनुशासित नागरिकों के चरणचिह्न नहीं हैं । सरकारी निर्णय के विरुद्ध वैधानिक उपाय काम में लिए जाते हैं, यह अनुचित नहीं, किन्तु अराजकतापूर्ण स्थिति का निर्माण उचित भी नहीं है । इससे जनतन्त्रीय प्रणाली को आघात पहुंचता है
और एकाधिनायकता को बल मिलता है | सरकारी निर्णय सभी पक्षों को प्रिय लगें, यह सम्भव नहीं । अप्रिय निर्णय का विरोध न हो, यह भी जनतन्त्र में असम्भव है। सम्भव यह है कि विरोध की पद्धति वैधानिक एवं शालीन हो । जनता को अनुशासन-विहीन बनाने में शायद किसी भी दल का हित नहीं है । आज एक दल को जनता की उत्तेजनापूर्ण और अनुशासन-विहीन प्रवृत्तियों का सामना करना पड़ रहा है, कल किसी दूसरे-तीसरे दल को भी करना पड़ सकता है । दायित्व किस पर
जनतन्त्र का भविष्य इस प्रश्न पर निर्भर नहीं है कि शासन किस दल का है ? उसका भविष्य इस प्रश्न पर सुरक्षित है कि उसकी जनता अनुशासित है और हर परिस्थिति का अनुशासित ढंग से सामना कर सकती है । शासक लोग भी आग्रह से मुक्त होकर जनता की स्थिति को जानना न चाहें, वस्तुस्थिति के साथ आंख-मिचौनी करें तो निश्चित रूप से अ-लोकतन्त्रीय प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है । यत्र-तत्र विधान-सभा की घटनाएं भी अनुशासन के प्रति अनुराग उत्पन्न करने में सफल नहीं हुई हैं । फिर केवल जनता से अनुशासन और संयम की आशा कैसे की जाए? सामंजस्य, समन्वय और सह अस्तित्व की बात केवल अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में ही अपेक्षित नहीं है। पहले उनकी अपेक्षा राष्ट्र में है - विभिन्न राजनैतिक दलों में है । विशेषतः सार्वजनिक महत्त्व की समस्याओं के समाधान के समय है । लोकतन्त्र अ-लोकतन्त्रीय उपायों से कभी सक्षम नहीं बनता । उसे सक्षम बनाने का प्रत्यक्ष दायित्व जनता पर है, प्रत्यक्षतर विधायकों पर और प्रत्यक्षतम शासकों पर | दायित्व के आधार पर यह स्वतः प्राप्त होता है- जनता अनुशासित हो, विधायक अनुशासिततर और शासक अनुशासिततम |
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