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युद्ध और अहिंसा
पंचशील
भारत अहिंसा का मूल स्रोत है । वह उसकी प्रतिष्ठा चाहता है । भारतीय धार्मिकों एवं दार्शनकों ने ही नहीं किन्तु वर्तमान राजनयिकों ने भी अहिंसा की प्रतिष्ठा का प्राणपण से प्रयत्न किया है । प्रधानमन्त्री श्री नेहरू ने विश्वशान्ति के लिए प्रभावपूर्ण ढंग से अहिंसा का अवलम्बन लिया था । शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, अनाक्रमण, समझौता-वार्ता द्वारा विवादों का निपटारा और निःशस्त्रीकरण- राजनीति के आकाश में एक दिन पंचशील नक्षत्र की भांति चमक उठा । लगा कि विश्वशान्ति में उसका महत्त्वपूर्ण योग होगा । चीन और भारत जैसे दो महान देशों के प्रमुखों ने विश्व के सम्मुख उसका यह रूप प्रस्तुत किया : १. एक दूसरे की प्रादेशिक या भौगोलिक अखण्डता एवं सार्वभौमिकता का सम्मान | २. आक्रमण न करना । ३. आर्थिक, राजनैतिक अथवा सैद्धान्तिक- किन्हीं भी कारणों से एक-दूसरे के घरेलू
मामलों में हस्तक्षेप न करना । ४. समानता एवं परस्पर लाभ । ५. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व । बांडुग सम्मेलन
बांडुग सम्मेलन में पंचशील में पांच और सिद्धान्तों का समावेश कर वह २९ राष्ट्र द्वारा स्वीकृत किया गया । १. मूल मानव अधिकारों और संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों, प्रयोजनों और सिद्धान्तों
के प्रति आदर । २. सभी राष्ट्रों की प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखण्डता के लिए सम्मान | ३. छोटे-बड़े सभी राष्ट्र और जातियों की समानता की मान्यता । ४. अन्य देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना । ५. संयुक्त राष्ट्र उद्देश्य-पत्र के अनुसार अकेले अथवा सामूहिक रूप से आत्मरक्षा के
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