________________
युद्ध और अहिंसा
संस्थान है । उसके शासक, जो अहिंसा की बात करते थे, वे इस अर्थ में करते थे और आज भी करते हैं कि कोई किसी पर आक्रमण न करे और आक्रमण के लिए शस्त्र - सज्जा न बढ़ाए ।
दोहरी भूल
कोई भी राष्ट्र, जो स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहता है, प्रत्याक्रमण की मर्यादा से अपने को मुक्त नहीं रख सकता। हां, प्रत्याक्रमण की मर्या से राष्ट्र को तब मुक्त रखा जा सकता है, जब उसका शासक वर्ग और जनता यह मान ले कि इस राष्ट्र पर हमारा कोई स्वत्व नहीं है, जो चाहे वह आए और इसे अपने स्वत्व में ले, यह भावना हो तो प्रत्याक्रमण की कोई भी आवश्यकता नहीं रहती । भौतिक पदार्थों का स्वत्व भी रखना चाहे और उनका संरक्षण अहिंसा के द्वारा करना चाहे यह दुहरी भूल है। उनका संरक्षण स्वयं हिंसा है और फिर वह अहिंसा का परिणाम कैसे हो सकता है ? अहिंसा के द्वारा उसी वस्तु की रक्षा हो सकती है, जिसके परिणाम काल में भी अहिंसा हो । भौतिक पदार्थ, सत्ता और अधिकार ये सब स्वयं हिंसा हैं, तब अहिंसा उनका संरक्षण कर पाए, यह कैसे हो सकता है ?
५१
पहुच का तारतम्य
उक्त विचारधारा के कुछ लोग कहते हैं— अहिंसा अणुव्रत अहिंसा का विभाजन है । अणुव्रत अनुशास्ता की दृष्टि में अणुव्रत अहिंसा की विभक्ति नहीं किन्तु पहुंच का तारतम्य है । कोई भी व्यक्ति एक ही डग में चोटी तक नहीं पहुंच सकता वह धीमेधीमे आगे बढ़ता है | भगवान् महावीर ने अहिंसा की पहुंच के कुछ स्तर निर्धारित किए थे । वे वस्तुस्थिति पर आधारित हैं । उन्होंने हिंसा को तीन भागों में विभक्त किया : १. संकल्पजा
२. विरोधजा
३. आरम्भजा
संकल्पजा हिंसा आक्रमणात्मक हिंसा है । वह सबके लिए सर्वथा परिहार्य है । विरोधजा हिंसा प्रत्याक्रमण हिंसा है । उसे छोड़ने में वह असमर्थ होता है, जो भौतिक संस्थानों पर अपना अस्तित्व रखना चाहता है। आरम्भजा हिंसा आजीविकात्मक हिंसा है । उसे छोड़ने में वे सब असमर्थ होते हैं, जो भौतिक साधनों के अर्जन-संरक्षण द्वारा अपना जीवन चलाना चाहते हैं ।
आक्रमण की अमानवीयता का बोध जागे
आज चीन संकल्पजा हिंसा या आक्रमणात्मक हिंसा की स्थिति में है और हिन्दुस्तान' प्रत्याक्रमण की स्थिति में है । इस स्थिति में भारतीय शासक यह निर्णय कैसे ले सकते
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org