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समस्याएं, सरकार, अनशन और आत्म-दाह
यही एकमात्र सम्यक् उपाय है ।
आज का जागता हुआ समाज इन बाध्यताओं को अधिक समय तक सहन नहीं करेगा । यदि ये बाध्यताएं धार्मिक मंच से आती हैं और साम्प्रदायिक तनावों की संपुष्टि के लिए आती हैं, तो वे धार्मिक मंच के भविष्य को धुंधला करने वाली प्रमाणित होंगी। अनशन
अनशन, जो कि विशुद्ध धार्मिक प्रयोग था और समाधि चाहने वाले संत अत्यन्त निर्मलभाव से उसे स्वीकार करते थे, आज राजनीतिक बाध्यता का हथियार बन गया है। उसका प्रयोग इतना सस्ता हो गया है कि उसकी शक्ति समाप्ति के तट पर है । राष्ट्रीय स्तर पर अनशन के प्रयोग पर चिन्तन और उसकी सीमाओं का निर्धारण होना चाहिए। जिस अनशन के साथ दूसरों की बाध्यता जुड़ी हुई हो, उसे धार्मिक अनशन मानने का पुष्ट आधार प्राप्त नहीं होता | आजकल अधिकांश अनशन राजनीतिक आधार पर हो रहे हैं और समस्या के लिए किये जाने वाले ये अनशन आज समाज के सामने स्वयं समस्या बनकर खड़े हैं । आत्मदाह
आत्मदाह तो अनशन से भी अधिक भयंकर हथियार है । अनेक देशों में आत्माहुति की करुण घटनाएं घटित हुई हैं । आश्चर्य होता है कि इस वैज्ञानिक व बौद्धिक युग में किस प्रकार ऐसी घटनाओं को समाज सहता है और उन्हें प्रोत्साहन देता है। लोकतंत्र की दयनीयता
लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी दयनीयता है कि उसके पास नीति-निर्वाह का कोई ध्रुव केन्द्र नहीं होता । बदलती हुई सत्ता, व्यक्ति और नीति ध्रुवांश को बहुत कम बचा पाती है । जातीयता, साम्प्रदायिकता और भाषा के सम्बन्ध में यदि कोई धुवनीति होती और निर्वाचन के अवसर पर भी उसकी ध्रुवीयता का निर्वाह किया जाता तो अनशन और आत्मदाह के अवसर स्वयं शक्तिहीन बन जाते । जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली
आज लोकतंत्र का बोलबाला है, इसलिए उसकी समालोचना करना अपराध हो सकता है किन्तु क्या एक अपराधी के शब्दों में वह बल नहीं हो सकता, जिससे अपने आपको निरपराध मानने वाले बहुत सारे लोग अपने छिपे अपराधों की सूचना पा सकें। लोकतंत्र जीवन की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है, किन्तु सत्ता से चिपट जाने वाले लोग उसकी श्रेष्ठता को प्रमाणित नहीं कर सकते । आज ऐसा ही हो रहा है । लोकतंत्र की वह सरकार सही अर्थ में लोकतंत्र की सरकार होगी जिसके विजय का आधार साम्प्रदायिक, जातीय
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