________________
हिन्दू राष्ट्रीयता का प्रतिनिधि है, जाति और धर्म नहीं
२१
आदि देशों में रहनेवाले लोग सिन्धुनद से उपलक्षित इस भूखण्ड (भारतवष) को हिन्दू कहते थे । 'हिन्दू' सिन्धु का रूपान्तर है, जो उनकी स्वदेशोच्चारण शैली में हुआ है। हिन्दु : सिन्धु
कालकाचार्य जब पारसीक देश में गए थे, तब उन्होंने शाही लोगों से यही कहा'चलो, हम हिंदुग देश में चलें'.-.-'एहि हिन्दुगदेसं वच्चामो ।' इस घटना का उल्लेख जिनदास महत्तर ने 'निशीथ चूर्णि' में किया है । वह विक्रम की सातवीं शताब्दी की रचना है । इससे स्पष्ट है कि उस समय तक 'हिन्दुग' का प्रयोग देश के लिए होता था । अभिधान राजेन्द्र (७/१२२८) में हिन्दु शब्द के अर्थ-परिवर्तन का क्रम बतलाया गया है । उसके अनुसार पहले 'हिन्दु' शब्द देशवाची था । पिर आधार-आधेय के सम्बन्धोपचार से वह 'हिन्दु' देशवासी आर्य लोगों का वाचक हुआ और तीसरी अवस्था में वह वैदिक धर्म के अनुयायियों का वाचक हो गया- 'हिन्दुरितिव्यवहारतो जनपदपरोपि तात्स्त्यात् आर्यमनुष्यपरोऽजायत । क्रमादेतद्देशप्रसिद्ध-वेदमूलकलोकागमानुसारिष्यपि बोधको । जातः ।"
__ वैदिक काल में सिन्धु और पंजाब को सप्तसिन्धु कहा जाता था । ऋग्वेद (२।३२।१२, २।१२।१२ आदि) में 'सप्तसिन्धु' का प्रयोग मिलता है । पारसियों के धार्मिक ग्रन्थ अवेस्ता में 'सप्तसिन्धु' के लिए 'हप्तहिन्धु' का प्रयोग मिलता है । ऋग्वेद (४।२७११) में केवल सिन्धु का प्रयोग मिलता है । हिन्दु उसी सिन्धु का पर्शियन रूपान्तर है ।
राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों में अभेदात्मक सत्ता होती है । जापान की प्रजा जापानी, जर्मन की प्रजा जर्मनी—ये प्रयोग जैसे राष्ट्र और राष्ट्रीय प्रजा के अभेदात्मक स्वरूप के सूचक हैं, वैसे ही हिन्दुग (हिन्दुस्तान) और हिन्दु भी क्षेत्रीय सम्बन्ध के सूचक हैं । हिन्दू का प्रयोग बहुत व्यापक अर्थ में था । बाहरी आक्रमणों से हिन्दुस्तान की सत्ता छिन्न-भिन्न हुई और उसकी प्रभुसत्ता आगन्तुक जातियों के हाथ में चली गई । तब हिन्दु शब्द का अर्थबोध संकुचित हो गया । मुसलमान और हिन्दु-ये दोनों शब्द एक-दूसरे के प्रतिपक्षी बन गए । संस्कृत व्याकरण में श्रमण और ब्राह्मण को नित्य प्रतिपक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जैसे— अहिनकुलम्, अश्वमहिषम्, श्रमणब्राह्मणम् ! यह नित्य-वैर क्षीण हो गया | मध्ययुग का व्याकरणकार 'श्रमणब्राह्मण' के स्थान पर 'हिन्दु-मुसलमान' लिखता।
बाहरी जातियों के आक्रमण-काल में हिन्दुस्तान की प्रभु-सत्ता वैदिक धर्मावलम्बियों के हाथ में थी । इसलिए 'हिन्दु' शब्द इन्हीं के अर्थ में रूद हो गया । यह 'हिन्दु' शब्द के अर्थ का इतिहास है। नए परिप्रेक्ष्य में देखें
आज फिर से 'हिन्दु' शब्द को नये परिप्रेक्ष्य में देखना आवश्यक है । विभक्त और परस्पर विद्विष्ट जातियों का संगम राष्ट्रीय एकता का विघातक हला है । जिस रितिक में हिन्दु और मुसलमान में शाश्वत विरोध बना था, वह परिस्थिति अब विलीन हो चुर्क
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org