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समस्या को देखना सीखें
नहीं होगा तो अहिंसा का मूल्य होगा केवल उपयोगिता । जहां बन्धन काटने का सवाल है वहां अहिंसा का स्वतन्त्र मूल्य है । समाज की उपयोगिता के साथ अहिंसा को जोड़ा जाता है तो उसका मूल्य सीमित हो जाता है ।
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मुमुक्षा का मूल स्रोत
अपरिग्रह और सत्य का विकास अहिंसा के आधार पर हुआ है। मुक्ति के सिद्धान्त से समाज में स्वतन्त्रता का विकास हुआ। भगवान् ने कहा- 'किसी को दास मत बनाओ, किसी पर हकूमत मत करो।' उन्होंने मुक्ति की दृष्टि से विचार किया तो लगा कि मुमुक्षा की भावना प्राणी की मौलिक मनोवृत्ति हैं, जिसे कभी ध्वस्त नहीं किया जा सकता है । इस मुमुक्षा का मूल स्रोत है, शरीर से भी मुक्त होना । शरीर से भिन्न आत्मा को मानने की कल्पना और मुक्ति की कल्पना से सामाजिक मूल्यों में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है ।
परिवर्तन का हेतु
जहां दार्शनिक मान्यता नहीं होती है, वहां परिवर्तन नहीं होता है । राजनीति में भी जो परिवर्तन होता है, उसके पीछे दर्शन है। मार्क्सवाद, गांधीवाद आदि दर्शन के आधार पर ही बनते हैं। आज भी ऐसे बहुत से राजनैतिक दल हैं, जिनके पीछे दर्शन नहीं है फलतः वे चल नहीं पाते, विकास नहीं होता । सामाजिक मूल्यों में स्वतन्त्रता का विकास मुक्ति के दर्शन से आया। मुक्ति के आधार पर और भी परिवर्तन आया । व्यक्ति सामाजिक, पारिवारिक क्षेत्र में होते हुए राजनैतिक स्तर पर आया है। निर्वाण का स्वर इतना प्रभावशाली रहा है कि उसके सामने स्वर्ग यानी बन्धन का स्वर क्षीण हो गया ।
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विंटरनीत्ज़ का मत
उपनिषदों के साथ पार्श्वनाथ का युग था । कुछ लोग उपनिषदों को वैदिक धारा का साहित्य मानते हैं किन्तु डा० विंटरनीत्ज़ ने सिद्ध किया है कि यह कोई एक धारा की सम्पत्ति नहीं किन्तु विभिन्न धाराओं का अनुदान है। उस समय में श्रमणों के पचासों सम्प्रदाय थे, उनमें से छः तीर्थंकरों का उल्लेख बौद्ध साहित्य में आता है। जैन-साहित्य में लगभग सभी सम्प्रदायों का उल्लेख प्राप्त है । निशीथ की चूर्णि में चालीस श्रमण धाराओं का उल्लेख मिलता है । महाभारत, जैनागम, त्रिपिटक, स्मृति इन सबके विचारों का तानाबाना इतना जुड़ गया है कि उनका मूल ढूँढ निकालना कठिन है । यह मध्यकाल में हुआ । आज की तुलनात्मक पद्धति चालू रही तो बहुत निष्कर्ष सामने आएंगे । हमने तो सोच लिया है कि पुराने जो कर गए, उसके बाद कुछ भी करने का नहीं रह गया । समुद्र को धकेलकर ज़मीन निकाली जा सकती है तो क्या धर्म में चिन्तन नहीं किया जा सकता ?
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