Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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रत्नकरएक्श्रावकाचार अर्थ सामान्य अवलोकन किया जाता है वह दर्शनोपयोग है। उससे यह सम्यग्दर्शन जिसका कि अर्थ यहां बताये गये प्रकारका श्रद्धान किया जाता है वह सर्वथा भिन्न है। दोनोंके निर्देश स्वामित्व साधन अधिकरण स्थिति विधान तथा सत् संख्या आदि अनुयोगों के प्रकरणको देखनसे यह बात अच्छी तरह समझमें आसकती है कि इनमें अन्तरं महदन्तरम् ।
शंका-श्री अरिहंत भगवानका दर्शनभी मोक्षका कारण कहा जाता है । अतएव सम्यग्दर्शन के प्रकरणमें देखना अर्थ भी यदि लिया जाय तो क्या आपत्ति है ?
उत्तर-जिन दर्शन या जिनमहिमदर्शनको सम्यग्दर्शनके कारणोंमें अवश्य ही पाया है। किन्तु शुद्ध आत्मस्वरूप बताये गये श्रद्धान परिणामसे रक्ति जिनदर्शनादिक मोक्षके कारण नहीं हो सकने और न माने ही हैं। जिनदर्शनादिक स्वयं श्रद्धानरूप न होकर उसके कारण हैं । इसलिये वे भी धर्म है। किन्तु ये स्वयं सम्यग्दर्शन नहीं हैं। इसलिये मोक्षमार्गरूप धर्म नहीं है। उक्त श्रद्धान परिणामसे युक्त जिनदर्शनादिक मोक्षके कारण कहे जा सकते हैं। परन्तु वे भी प्रथम तो मोक्षक साक्षात कारण नहीं हैं। दूसरी बात यह कि इस कथनसे भी श्रद्धानरूप परिणामकी ही मोक्षके प्रति चास्तविक कारणता सिद्ध होती है।
शंका---श्रद्धान ती झानकी ही एक पर्याय विशेष है। क्योकि तस्त्रार्थ अभिमुग्न बुद्धि को ही श्रद्धा कहा है। इससे ली सम्यग्दर्शन ज्ञानसे भिन्न नहीं ठहरता ।
उत्तर---श्रद्धान शब्दकी निरुक्तियों पर ध्यान देनेस दोनोंकी भिन्नता सहज ही समझ में श्रासकती है। क्योंकि यहां पर जो यत तव शब्द दिये गये हैं शिभिन्न अधों को स्पष्ट कर देते हैं । परन्तु साधन मे होंक अनुसार इस शब्दका सम्यन्दर्शन अर्थ भी विरुद्ध नहीं है जिसके होने पर-प्रकट होजाने पर तत्वार्थादि विषयक श्रद्धान हुश्रा करता है उसको कहते हैं सम्पग्दर्शन | इस तरह से अर्थ करने पर श्रद्धान और सम्यग्दर्शनमें जहां भिन्मता प्रतीत होती है वहीं सम्यग्दर्शनका श्रद्धान लक्षण सुसंगत है यह बात भी स्पष्ट होजाती है।
प्रश्न-पुम्यग्दर्शन और श्रद्धान जा कि दोनों भिन्न २ परिणाम हैं । तब क्या इनमें यभिचारकी संभावना नहीं है ? क्या यह जियम है कि जहां श्रद्धान हो वहां सम्यग्दर्शन भी अवश्य हो ? सम्पग्दर्शन के वास्तव में न रहते हुए भी श्रद्धान रहा करता है यह कहना क्या युक्तिथुक्त अथवा वास्तविक नहीं है।
उत्तर---सामान्यतया श्रद्धान सम्यन्दर्शनसे व्यभिचरिन भी हो सकता है । क्योंकि वह सत् समीचीन और असत्-असमीनीन दोनों ही तरहका पाया जाता है । अतएव श्रद्धान विशेषका समान्ध यदि सम्यग्दर्शनके साथ माना जाय तो कोई भी आपत्ति नहीं है। यहां पर सम्पम्दर्शन के लक्षमा रूपमें जिस श्रद्धानका उल्लं व किया है वह श्रद्धान विशेष है । जैसा कि उसके कर्म पदक
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तस्वार्थाभिमुखी बुद्धिः श्रद्धा सात्म्यं मचिस्तथा ।। पंचाध्यायो । २- यदावात् यथाभूतमर्थ गुदात्यात्मा सत्सम्यग्दर्शनम् ॥ राग १.२.१८ ।