Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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इलाकरगडाधकाचार अपना और वारिषेणका उपवास रहने के कारण केवल पुष्पदन्त को ही अाहारार्थ नगर में जानेकी माना दी। पुष्पदन्नने मोचा---ग्राज इतने दिन बाद बडे भाग्यसे पिंजड़े का दरवाजा खुला है। और इसीलिए उसने जगदी २ जाने की तयारी की कितु उसीसमय वारिपेणने उसकी चेष्टासे यह समझकरके कि अभी भी यह दीक्षा छोडकर पर भाग जानेको उत्सुक है, कहा -पुष्पदन्त ! ठहरो, मैं भी चलता है। और वे भी माथ हो लिए। दोनों वेलिनी के घर पहुंचे; चेलिनीने भित्रके साथ पुत्रको आता देखकर कुछ संदेहवरा परीक्षा के लिए दो श्रासन उपस्थित किये, एक सराग और इसरा वीतराग । बारिषेण दूसरे पर और पुष्पदन्त पहलेपर बैठे। बारिषेणने कहा- मा! अपनी मर बहुओंको तो बुलाओ। भाज्ञानुसार समां बहुए. उपस्थित हुई। पुष्पदन्त ने भी देखा समी एकसे एक अधिक सुन्दर और स्या, देशांगना मी जिनके सामने फीकी मालूम पड़ती हैं, जिनमें नवयौवन का क्सन खिल रहा है, सुगंधित रमजारत वरवालंकारसे सुसज्जित है । अब बारिश ने कहा- मा! अब हमारी भाभी सुदती को बुलाओ। थोडीही देर में वह भी उपस्थित हुई। पुष्पदन्तन उसको भी देखा । मानो हिमसे दग्ध कमलिनी है। सब प्रांगोपांग कृश और रूखे । हिरमिधिकी रंगी भोती मानो साचात् संध्या ही है, अत्यन्त दीन पोधर मानो शरन के मेघ ही हो, केशपाश की जगह देखनेसे मालूम होता मानो तपोलदमी ही है। केवल इङडियों का पंजर मानो कंकाल ही है। ऐसा मालूम हुआ मानो सामने मूर्तिमान होकर वैराग्य ही उपस्थित हुआ है। .
धारिषेण पुष्पदन्त से बोला, "मित्र ! आपसी यही वह प्रणयिनी है जिसके कारण अभी सकभी आपका मन मुनि नहीं हो रहा है। और यह अापकी सव भोजाई है। और यह सारा वैभव धन सम्मसि कुटुम्ब सेवक एवं महाभाएडालक पदका यौवराज्य है और में भी भापके सामने उपस्थित हूं जो इन सबको स्वयं छोडकर दीक्षित हुआ हूँ" पुष्पदन्त लज्जित हया और विषय सुखोंमें ग्लानियुक्त होकर बोला-मित्र ! सना करें, भार तो यहां बैठना भी अच्छा नहीं लगता । मैं इदय से विरत होकर अत्र भायमुनि बनता हूं। दोनों ही चेलिनी का अभिनन्दन करके गुरुपाद में जाकर निचल्य हो तप करन लगे। अतएव कहा है किसुदतिसंगमासक्तं पुष्पदन्ततपस्विनम् । वारिषेणः कृतप्राणः स्थापयामास संयमे ।
विष्णुकुमार अबन्ती देश में विशाला नामकी नगरी का जयबर्मा नामका राजा था । जिसकीकि पटरानी कानाम प्रभावती था। उसके चार मंत्री थे-शुक्र पहस्पति प्रल्हाद और पलि । एक दिन राजावा मंत्रियों के साथ महल के ऊपर बैठा हुमा नगरी की स्थिति देख रहा था कि उसे समस्त शास्त्राम प्रवीण महान ऋद्धिधारी सातसों मुनियों के संव सहित इसी नगर के बाहर सर्वचनानन्दन नाम के उद्यान में आकर ठहरे हुए परम तपस्वी अकम्पनाचार्य के चरणों की अर्चा करने के लिए खा सामग्री लेकर जाता हुआ होत्फुख लोकसमूह दिखाई पडा । जयवर्माने पूछा-यह अस.