Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 386
________________ mann-Innapuleenrnnn গৰি পৰা অকাৰী ধী इन्द्र पदके लिये योग्य पुरयायु आदिका बन्ध जिस प्रकार प्रत संग्रम तप आदिसे युक्त जिनेन्द्रभक्ति के निमित्तसे हुआ करता है उसी प्रकार विनयपूर्ण वैयारम तथा प्रायश्चित आदिसे युक्त प्रत संयम तपके निमिससे जिनका सम्यग्दर्शन स्पष्ट है उन्हीं जीवोंको चक्रवसित्व के योग्य पुण्य कर्म विरोपोंका- असाधारण उच्चोत्र आदि कर्मोका बन्ध हुआ करता है। इसी आशयको "स्पष्टदृशः" शब्द स्पष्ट करता है | क्षत्रमौलिशेखरचरणाः । चतान् ब्रायन्ते इति क्षत्राः१ –राजानः । तेपां मौलयः इति क्षत्रमौलयः । शेखर इव परणे इति शेखरचरण । क्षत्रमालिपु शेखरचरणो येपाम् ।। क्षण यातुका अर्थ बथ करना या मारना होता है। चत शब्दका अर्थ जो किसीके द्वारा मारा गया है अथवा मारा जा रहा है ऐसा होता है। ऐसे व्यक्तिका जो वाण-रक्षण करनेवाला है उसको कहते हैं क्षत्र । यह वा शन्दका यौगिक-निरुक्त्यर्थ है । किन्तु रूदिवश इसका अर्थ घत्रियवर्शका व्यक्ति अथवा प्रजाका पालक राजा हुआ करता है मौलि शब्दका अर्थ मुकुट और शेखर शब्दका अर्थ मुकुटके कारका फूल होता है । मतलब यह कि उस चक्रवर्तीके चरण उन क्षत्रिय राजाओंके मुकुट के ऊार फलका काम किया करते हैं। मौलिसकट शब्द साथमं रहनेसे क्षत्रिय राजाओं में भी मुकुटबद्ध राजा अर्थ समझना चाहिये । क्योंकि ३२ इजार मुकुटबद्ध राजा उसकी सेवा किया करते हैं। उन राजाओंके मुकुटके ऊपरके फूल चक्रवर्धाके चरणोंमें रहा करते हैं, ऐसा भी इस वाक्यका अर्थ हो सकता है। तात्पर्य यह कि जिसतरह तीर्थकर कुलकर नारायण प्रतिनारायण बलभद्र कामदेव अथवा गणथर इन्द्र आदि आभ्युदयिक पदोंका लाभ भिन्न भिन्न कारणोंसे हुआ करता उसी प्रकार चक्रवात पदके विषय में भी समझना चाहिये। जिसका सम्यग्दर्शन विविध तप. चरणोंके द्वारा स्पष्ट----विशद तथा कृतिद्वारा बद्धिगम्य बन जाता है उसीको उन तपश्चरणों के निमित्तसे अनेक अतिशयोंसे युक्त ओर सवोत्कृष्ट भोगोपभोग आदिके साधनोंसे पूर्ण यह पद प्राप्त हुश्रा करता है। बह खण्डवी समस्त देवों और मनुष्योंमें जितना बल है उतना बल इस चक्रवर्तीकी दोनों भुजाओं में रहा करता है । उसकी दृष्टि---चक्षुरिद्रिय सूर्यविमानमें स्थित जिनबि १-नतास्किल त्रायत इत्युद्रमः क्षत्रस्य शब्दो भुवनेषु रुदः॥ रघुवंश । "क्षद्भ्यो दोभ्यस्त्रायन्ते रचम्ति इति क्षत्राः राजानः इति पं० गोरीलाल जी कृता निरुक्ति " -क्षत्राणां मौलय इति क्षगमालयः तेषां शेखराणि इति क्षत्रमौलिशेखराणि । तानि परणेषु येश ते इतिनिरुक्त्या राजानस्तषां मौलयो मुकुटाः तेषु आपाठाः शेखरा तानि धरणेषु येषामिति प्रभाचन्द्राचार्याः ३-मुकुटबद्ध राजाका लदाण देखो ति० पगा० नं०४२ / तथा धवला १-३६! ४-आदि १८३७-३० । यदते चक्रोशतिना भूसुधाशिनाम् । ततोऽधिकगुणं तस्य बभूव भुजयोबलम् ॥२१॥ मा० ५० १५

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