Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 431
________________ रलकरमापकाचार __ विक मामिति प्रोण विसृज्य राज्य मत्वा तमायाप जिनमज्याम्॥७॥ पराडेन दंडेन वशं तु निन्ये, प्राचण्डदोर्दण्डपलानरातीन् / सोऽन्तर्गवा कर्मचमू, विजेतु जातोधमीदण्डमदरस्पत् स्वम् // // पथा तमिसान्तरितं तमीवम् , निधारयामास पुरा सरसः / तथैव रतत्रयतेजसान्तःस्थित तमो मन्यनृणां बहार // 6 // स हुन्धुनाथो जगदेकनाथो मो मन्मयो मारजयी जिनेन्द्र। नृपेन्द्रशास्तापि निरस्त्रवस्त्र उपक्षवाक् पातु निरक्षरोषिः // 10 // पर-बिनस्तवनम् भय श्रीमान् महेन्द्रायः स्वयंभूयोगवानरः / प्रथाल्यातासस्वातन्त्र्यः पवित्रयतु मां प्रा ||1|| पभोऽजितसामर्थ्यः शंमषो नोऽमिनन्दनः / पद्मादयः सुमति पातु कोटिचन्द्रपुतिः स मे ॥सा पुष्पदन्तप्रसन्नास्यम् सदाचं सुखशीतलम् / दृष्कर्महतये निस्यं भजन्ते यं सुरासुराः॥२॥ पेनाम्यपायि सद्धर्मः सुपार्वस्थगोशिने / सर्वश्रेयोऽर्थ संसाधुः पासुपूज्यगुणात्मकः // 4 // तस्मै बिमलपोधाय नमोऽनन्तगुणान्मने / पस्मात् प्रादुरभूदेवी शारदा अगदम्बिका // 5 // भव्येभ्यो रोचते यस्य पवित्र नाम पावनम् / अच्छन्ति तत्पदं यत्र नितीनाः योगिना पपात् / / 3 / / छन्पुवच्छान्तिकर्ता च पदत्रपरिभूषितः / देवदेवो महादेवोऽपायात् पायात् स नः सदा / / 7 // गुणरवाकर मलहर गभीर, परमौदारिकशुभतमपरीर / भरनाथ मारपूज्य देव, जय जप जिनवर भगवावरेप | इस प्रकार भी भगवस्समन्तभद्राचार्यविरचित रखकरयाधापकाधारकी पद्रिय नामकी विधापारिषि स्यानावाचस्पति जैनसिद्धान्तमर्मन बेरनी, एटा, उधरमदेव निवासी ईदोर (मन्य मारत) प्रवासी पंडितप्रवर खूपचन्द्र (पदमावती पुरवासाविसहबार) रिपित हिन्दी टीका सम्पम्दर्शनका वर्णन करनेवाला प्रथम अध्याय पूर्ण हुमा // 1 // इति शुभ भई च भूयात् जीयासमन्नमद्रोऽसापमा निन्दनः / सम्बदरीनमहात्मा पन्द्रोपोवकरः शिवः //

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