Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 357
________________ AranMARA रनकरण्डनायकाचार है। फलतः वे सभी गुण इस तरहके व्यक्तिके शरएम मानकर उसका आश्रय लिया करते हैं। अवका सभी गुण सभ्यग्दर्शनको नाथ शरण्य मानकर जहां वह रहसा है यहाएर ये भी आकर उपस्थित हो जाते हैं। माहाकुला:--मच्च तन्कुल । तत्र जाताः भवा, तम या अपत्यानि-माहाकुलाः। महान कुलोमें उत्पन्न होनेवाले । ऊपर सम्पदृष्टिका दुष्कूलोंमें जन्मग्रहण वर्जित बताया है। अतएव इस प्रश्न या विज्ञासा कि जब वह दुष्कुलमें या दुष्कुनोंमें जन्म धारण नहीं करता तो फिर किस तरहके लोंमें वह उत्पन्न हुआ करता है ? उत्तर में यह कहागया है कि जो सम्यग्दर्शनसे पवित्र महान कुलोंमें ही जन्म धारण किया करते हैं । इस शब्दके द्वारा आचार्यका अभिप्राय, उस म जात्यार्यों में और समातित्व परम स्थानमें ही जन्म ग्रहण करनेके नियमको बतानेका जिसमें कि मातृपक्ष तथा पितृपक्ष दोनों ही वंशामें विशुद्धि पाई जाती है । उस कुलक्रमागत शिद्धिको सूचित करने के लिये ही कुलके विशेषकरूपमें महा शब्द का प्रयोग किया गया है। जिस तरह किसी भी व्यक्तिके विषयमें यदि यह कहा जाय कि यह रूपवान है. यह ज्ञानी तो कोई भी शरीरधारी ऐसा नहीं मिल सकता कि जो रूपवान् न हो क्योंकि सभी शरीर प जससे युक्त ही है। अतएव "रूपवान्" कहनेका अर्थ होता हैं विशिष्ट रूपको धारण करने माला। इसी तरह कोई भी आत्मा ऐसा नहीं हैं जो कि ज्ञानशून्य हो, अतएव "पानवान" काहनेका अर्थ होता है असाधारण ज्ञानका धारक । इसी प्रकार प्रकृतमें भी समझना चाहिए। कोई भी संसारी प्राणी ऐमा नहीं है जो कि किसी न किसी आगम निर्दिष्ट कुलमें जन्म प्रास करता हो। फिर जब ऊपरकी कारिकामें सम्यग्दृष्टि की दुष्कुल में उत्पधिका निपेश किया महानव पारिशेष्यात् उसका सत्कुलमें जन्म ग्रहगा करना स्वयं सिद्ध हो जाता है। कनीन शब्दका लोकमें अर्थ भी 'उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ' ही होता है। अतएव विचार करनेपर का महा विशेषण अर्थ विशेषका बोधक ही सिद्ध होता है। अतएव भागमके अनुसार में शम्दसे शरीर बन्म और संस्कार जन्म दाना हा.तरहको शुद्धिसे युक्त मातृपक्ष तथा पिप पोका समूहरूप सज्जातिय नामका प्रथम परमस्थान ही अर्थ ग्रहण करना चाहिये। महार्थाः-महान्तः अर्थाः येषां ते महार्थाः । इस निरुक्तिके अनुसार इसका अर्थ होगा है कि जिनका अर्थ पुरुषार्थ अथवा धर्म अर्थ काम और मोक्षरूप पुरुषार्थ महान् है। ध्यान से पर पर महचाका आशय मुख्यतया विधुलतासे नहीं, अपितु प्रशस्तता, मान्यता-भादरणीपना जयपूर्णता एवं अपापोपडसता तथा प्रदीनवृत्तिसे है । क्योंकि इस शब्दसे आचार्यका अभिप्राय

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