Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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र मापकाचार आतापन योग धारण करके खड़े थे कि इसी समय यादया अपने सद्योजात पुनको लेकर भाई और बोली कि या तो दीक्षाको छोड़कर घर चल, नही तो अपने इस पुत्रको भी संभाल । उपसमैके कारमा मौनस्थ मनिराजसे कुछ भी उत्तर न पाकर वह पत्रको उसी उष्ण शिलापर उनके सामने ही पटककर क्रोबसे बडबडाती हुई यथास्थान चली गई। इसी समय विजयार्थपर्वतकी उत्तरश्रेणीके श्रमरावती नगरका स्वामी भास्करदेवनामका विद्याधर जिसके कि राज्यको छोटे माई पुरंदरदेवने हलुप लिया था, अपनी मसिमाला नामकी पटरानीके साथ उपर्युक्त मुनिराजकी वन्दना के लिये वहां प्राया । उसने पाश्चर्य के साथ देखा कि रालक उष्णशिलापर सानन्द खेल रहा है उसका शरीर कमलसे भी अधिक कोमल होकर भी मानी बजटिन है। तत्काल उसको उठाया और मशिमालासे गोला--प्रिये बहुत दिनसे तुम पुत्रको इच्छा कर रही थी अाज सौभाग्पी बात है कि भगवानके पाद प्रसादसे यह सर्वलक्षणसंपन पुत्र प्राप्त हुआ है। यही मेरे वंशकी लता को सफल करनेवाला है । इस अपूर्व युष्पको जिसका नाम बजकुमार है, लो और मंभालो । यह कहकर पुत्र उमको दिया । मुनिराजका उपमर्ग दूर हुआ ! दोननि उनकी बन्दना की और उन्हींसे बजकुमारका भी सब धृत्तान्त जानकर यथास्थान प्रयाण किया।
राजकुमार यौवनको पाकर न केवल शरीर ही से मुन्दर बना किंतु माइपक्ष और पितृपक्ष की अनेक विद्याओं का स्वामी बननेक सिवाय अपने मामा सुवाक्यमूर्तिकी कन्या इन्दुमतीका मी परिणयन कर स्वामी बना । एक समय वह वनकुमार अनेक विद्याधर पुत्रों के साथ हिमवानपर्वत पर क्रीडा करनेकेलिये गया। वापर गरुडवेग विद्याधर की पुत्री पवनबंगा बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कररही थी । विधान विप्न उपस्थित करनेकेलिये अजगर का रूप रखकर उसको निगला कि उसी समय अकस्मात् आ उपस्थित हुए बजकुमारने केवल परोपकार बुद्धिस गारुडविद्याके द्वारा उसका यह उपसर्ग दूर करदिया जिससे उसकी वह विद्या उसी समय सिद्ध होगई। पवनवेगाने अपने मन में इस परोपकारी बज्रकुमारको ही जीवनका साथी बनाने का निश्चय करके प्रज्ञप्ति नामकी विद्यादी
और यह कह करके कि आपको विद्या इसी हिमवान्न पर्वतकी तलहटीमें नदीके किनारे माता.. पन योग धारण करके सड़े दूए घोर तपस्वी संयी भगवान् के तपःप्रभावसे उनके चरणकमलके निकट बैठकर केवल पाठ करनेसे ही सिद्ध होजायगी, अपचे नगरको चली गई । राजकुमारने भी उसी प्रकार फेनमालिनी नदीके किनारे उक्त भगवान्के समक्ष उस विद्याको सिद्ध करके अपने चाचा पुरंबर देवसे राज्य वापिस लेकर पिता भास्करदेवको उसपर प्रतिष्ठित किया और उन्हें अनेक विद्याधरीद्वारा सेव्य बनाया । तदनन्तर स्वयंवर में उक्त पवनवेगा भादि अनेक विद्याधर कन्याओंका रण किया ।
एक समय कुछ दृष्टवुद्धि व्यक्तियों के व्यवहारसे बजकुमारको मालुम हुआ कि वास्तवमें में भास्करदेवका पुत्र नहीं हैं। उसने सत्य घटना जबतक मालुम न हो तबतककेलिये आहारादिका परित्याग कर दिया। फलतः मातापिताके साय उक्त सोमदच भगवानके पास मथुरामें जाकर