Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 350
________________ चन्द्रिका टीका चीसा श्लोक कठिन बताई गई है। प्रकृत कारिकाका यह वाक्य भी बताता है कि सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्य गतिको पाकर भी दुष्कुलको प्राप्त नहीं करता, उनम कलमें उत्पन्न होकर मी इन्द्रियों भादि अथवा अंगोपांगसे विफल या विकृत नहीं हुआ करता और निर्विकन होकर मी अल्पायु नहीं होता तथा योग्य प्रायुको पानेपर भी दरिद्रकुलोरपा नहीं हुमा करता । इस तरह वह जीर सम्यक्रवके प्रभावसे मनुष्यभवको पाकर भी उसमें उन अवस्थाओं को नहीं प्राप्त किया करता बो कि उन भिन्न मिम पाप कमकि फलस्वरूप है जिनका किया तो सम्यक्त्व प्राप्तिके भनन्तर उसके बन्ध नहीं हुआ करता यदि उससे पहले बन्धे हुए सचामें हैं तो वे फल देनमें समर्थ नहीं रहते क्योंकि या तो सम्यक्त्व कारण उनको उदयमें आकर फल देनमें निमिचभूत द्रव्य त्रिकालभावरूप मामग्री ही प्राप्त नहीं हुआ करती अथवा पुण्यप्रकृतियोंके रूपमें वे संक्रान्त बोजारा करते हैं। _इस तरह फल विप्रतिपत्तिके निराकरणके प्रकरणको पाकर सम्यक्त्वके श्रीरंग माहात्म्य का दिग्दर्शन किया गया। इससे मालुम हो सकता है कि सम्यग्दर्शनक उदित होनेपर समय संसारकै अन्तरंग कारणभूत कर्मोंका-उसके द्रव्य क्षेत्र काल भावका-प्रकृति प्रदेश स्थिति और अनुभागका कितना प्रभाव हाता और उसके फलस्वरूप आत्माकी विशुद्धि-उत्सम सुम्सुके रूप में अपने द्रष्य क्षेत्र काल मायके अनुसार कहां तक प्रकाशित ही जाती है तथा वह जीन मोक्षमार्गमें कितना आगे बढकर निर्वाणके कितने निकट पहुंच जाया करता है। अब यह जिज्ञासा हो सकती है कि सम्यग्दृष्टि जीव जिन जिन अवस्थामाको नहीं प्राप्त किया करता उनकी तो बताया परन्तु यहां यह भी बताना उचित और मावश्यक है कि पह किन किन अवस्थाओंको प्राप्त किया करता है । इसीका समाधान करने के लिये भाचार्य श्रोजस्तेजोविद्यावीर्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथा । माहाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः ॥३६॥ अर्थ-दर्शन-सम्यग्दर्शनसे जो पूत-पवित्र हैं वे महान् लोकपूज्य-उम्प अलमें उत्पन्न होते हैं, महान अर्थ--धर्म अर्थ काम और मोवरूप पुरुषार्थोंके सापक होने है, और मनुष्योंमें तिलकके समान पूज्य स्थान प्राप्त किया करते हैं। साथ ही चे मोजम्बी तेजस्वी विद्वान पराक्रमी या बलवान यहा उत्साही सथा यशस्वी कुम्मी गुणोत्कर्षक धारक और सम्पत्तिसे युक्त हुआ करते हैं ! प्रयोजन ऊपर निषेधमुखसे वर्णन करते हुए सम्यग्दृष्टी जीव जिन जिन अवस्थाओं को प्राप्त नहीं किया करता उनका दिग्दर्शन कराया गया है वह आंशिक वर्शन है। उसने अवान्तरमें

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