Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ रलकरएसावकाचार पनता है और सम्यक्त्वसहित ही मृत्युको प्राप्त होता है तो यह भी मोगभूमिमें पुरुष ही हुमा करता है। देव और नारकियोंकी आयुके विषय में अन्सर है । क्योंकि उनके मनुष्य और तिर्थ गायुका ही यंथ हुआ करता है । देव मरकर देव या नारकी नहीं हुमा करवा उसी प्रकार नारकी मरकर नारकी या देव नहीं हुआ करता । किन्तु यहांपर प्राचार्य सम्पादृष्टिको नरक और तिर्यग्गतिमें जन्म ग्रहण करनेका सर्वथा निषेध कर रहे हैं । अतएव स्पष्ट है कि यह कथन अपद्धायुगक जीवोंकी अपेक्षास ही समझना चाहिये। और इसीलिये “सम्यग्दर्शनशुद्धाः" शन्दका अर्थ अबद्धायुष्क सम्यष्टि ऐसा ती करना उचित संगत है नारक-तिर्यक नए मकस्मीन्यानि-नारक आदि चारों शुदाय इतरेतर समास करके भाव अर्थम स्व प्रत्यय करनेपर नपुसकलिंगके बहुवचनमें यह शब्दर बनता है । इतरेनर और समाहार द्वन्द्वमें जो विशेष्यविशेषणमाक्में अन्तर पड़ता है उसका पनि पहले किया जा चुका है। तदनुसार यहाँपर भी समझना चाहिये । शब्दोंका अर्थ इस प्रकार है. जिस जीवके नरक आय और नरकगति नामकर्मका तथा कदाचित् नरक गस्यानुपूर्वी नाम कर्मका भी उदय पाया जाता है उसको नारक अथवा निरुक्तिभेदके अनुसार नारन भी कहा जाता है । इस पर्यायके थारण करनेवाले जीवोंमें प्रायः सुखकी मात्रा नहीं पाई जाती इसलिये इनको नारक और इनके वहांके द्रव्य व काल भात्र अथवा परस्पर में स्नेहका भाव नहीं रहा करना इसलिये नारत भी कहा जाता है । क्योंकि नरक आयु आदि कर्मोके उदयसे प्राप्त द्रव्य. व्यंजन पर्यायके धारक इन जीनोंको वहांको शरीर एवं इन्द्रियों की विषयभूत द्रव्य सामग्रीमें तथा उत्पनि उठने बैठने घूमन आदिके चत्रमें और अपने जीवनकाल एवं वेदना कपाय श्रादि भावोंमें अनुराग नहीं हुआ करता। इस तरहसे इसपर्यायकी लन्धि आदिमें नरकायुका उदय मुल्य कारण है इसलिये उसके उदयसे युक्त जीवको नारक कहा जाता है। किन्तु जबतक उसका उदप नहीं हुआ है केवल उस श्रायुका बंधमात्र होजानेसे उसका अस्तित्व ही जिन जीवोंके पाया जाता है, उनको भी उपचारसे नारक कहा जा सकता है क्योंकि वह उस पर्यायको अवश्य ही प्राप्त करनेवाला अत एव नंगमनयसे बह भी नारक ही है और वह बैसा कहा जा सकता है। फिर भी इस कथनकी यहां मुख्यता नहीं है । क्योंकि इस पयिके कारणभूत उस भायुकर्मका बंध मिथ्यात १-नारकाणां सुराणां च विरुद्धः सक्रमो मिथः । नारको नहि देवः स्पान्न देवो नारफो भोप ।।१५।। २-नारकश्च तिर्यक् च नपुसकरय स्त्री ति नारफति नपुसकरित्रयः तेषां भाषाः इति मारकतिर्यक नपुंसकात्रीत्वानि। ३न सुखं यत्र स नरकस्तत्र जाता नारफाः । नरान् कायति इति वा । न रता नरसास्त्र या नारवा परमति जदो णि दम्ब खेचे व कालभारे या भएणोध्योदि य आया तसे गारवा भगिया बी. तथा पर्ख १ गावा नं. १२८

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431