Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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चन्द्रिका टीका इकतीसो रलोक कर्णधार-जिसके द्वारा नाय चलाई जाती हैं उस लकडीको कई कहते हैं । उस खाडीको हाथमें लेकर चलानेवाले-नाव खेनेवाले मल्हाको कहते हैं कश्धार । यहाँपर इस शब्दका प्रयोग दर्शनकी विशिष्टता बताने के लिये—अंवक्तव्य दरीनां बिसी हुई विशेषताको किसी प्रकार अभिव्यक्त करनेके लिये उपमा या दृष्टान्त रूपमें किया सभा है। इस शब्दसे दत्तकी योग्यता भी प्रकट होती है । फलतः प्राचार्य महाराज इस के प्रपोगसे यताना चाहते हैं कि मोक्षमार्गमें दर्शन-सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रका नेता है। ___ सत्-शब्द सर्वनाम है इसका प्रयोग पहले उल्लिखित या अधिन मंत्र के बदलेमें हुआ परता है। अतएव पूर्वपरामशी भी है। यहापर पूवार्धकी आदिमें कल पदरुपाय हुय दर्शनके बदले में यह प्रयुक्त हुआ है । तत् भार यत्का नित्य सम्बन्ध है। इसीलिये इनमेस किसी भी एक शम्दका प्रयोग होनेपर दूसरे शब्दका भी प्रयोग समझ लेना चाहिये। और यथारपान उसका सम्बन्ध जोडकर अर्थ करना चाहिये ।
मोक्षमार्ग—इसका अर्थ आस्मा से समस्त पर पदार्थ-द्रव्यकर्म भाला और नोकर्मकी पूर्णत गा विनिवृधि होजानेका असाधारण आय होता है । जो कि सर्गा मामय बताया गया है और तरतमरूप भवस्थाओंके अनुसार अनेक प्रकारका है । किन्तु मर जो सामान्य वर्ष यताया गया है वह यथायोग्य सभी अवस्थाओंमें घटित होता है। ..
अवश्यते--अदादिगण की व्यक्त वचनार्थक चच् धातुका अपूर्वक वर्तमान कालके अन्य पुरुषके बहुवचनका यह क्रियापद है। जिसका अर्थ यह होता है कि "अच्छी तरहसे स्पष्टतया कहते हैं ।" इसके कई पदका पचमें प्रयोग नहीं किया गया है । अतएप आचाची गणथरदेवाः, जिनेश्वराः, सरीखा कोई भी कई पद स्वयं ही यहां जोडलेना चाहिये असामि र पहागया है।
इन समी शयोंके अर्थपर दृष्टि रखकर कारिकाका अन्वयपूर्वक अर्थ साहसे करना और समझलेना चाहिये
यत् दर्शन (क) बानचारित्रात् साधिमानम् उपारनुने, गणधर नासात दर्शने (कर्म) मोधमार्गे कर्णवारं प्रचक्षते ॥ अर्थात्-जो दर्शन शानचारित्रको अपना सालको प्रथम प्राप्त परता और व्याप्त करता है गणवरदेव उमको “यह मोक्षमार्गमें कर्णधार है"एशा स्पष्ट कहते हैं।
यहां यह बात भी जान लेनेकी है कि "प्रचक्षत" क्रियापद द्विकर्मा है। इसलिये दर्शन और कर्णधारं ये दोनों ही पद उसके कर्म हैं। जहां पर दो कर्म हुआ करते है वहां प्रायः दोसे एक गौण और एक मुख्य हुआ करता है। परन्तु दोनों से कौन गीण और कौन मुख्य माना जाप यह वात विवषा-वक्ताकी इच्छा या उसके अभिप्राय पर निर्भर है। उदाहरनाथ "अना ग्राम नपत्ति" यहाँपर कदाचित् अजा-बकरी भी शुख्य कर्म बन सकता है तो कमी प्राम भी मुरूप कर्मो सकता है। गांवको जाता हुआ देवदह अपने साथ किसको देजा रहा है। इस प्रश्नके