Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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"सद्द्दष्टि" शब्द के कहनेमात्र से धर्म अथवा सोचामार्ग के प्रकरण में उसका क्या आशय या रहस्य है यह भले प्रकार समझमें नहीं आ सकता था। अतएव इस लक्षणवाक्यका कहना आवश्यक है यह कारिका निरर्थक नहीं; अपना असाधारण प्रयोजन रखती है।
शब्दों का सामान्य विशेष अर्थ --
श्रद्धान शब्दकी निरुक्ति इस प्रकार है कि धातुसे श्रत् बनता है जिसका अर्थ हैं विश्वास । धा धातुका अर्थ धारण करना है । अर्थात् विश्वासके धारणको श्रद्धान कहते हैं । मूल में धर्म के भेद बताते हुए "सद्द्दष्टि सम्यग्दर्शन" शब्द का प्रयोग किया है। यहा उसका अर्थ "श्रद्धान” शब्द के द्वारा बताया है। कारण यह कि इन्द्रियोंके द्वारा किसी भी मूर्त पदार्थको देखने के अर्थ में ही दर्शन शब्द लोक में प्रसिद्ध है किन्तु वह संसार निवृत्तिका कारण नहीं हो सकता । श्रद्धान श्रात्मपरिणाम होनेसे निर्माणका कारण हो सकता है। अतएव प्रसिद्ध अर्थ न लेकर आगमोक्त - आम्नाय प्रसिद्ध एवं युक्ति पूर्ण विशिष्ट अर्थ की तरफ दृष्टि दिलाई हैं? | और ऐसा करना व्याकरण शास्त्र भी विरुद्ध नहीं है। क्योंकि शब्द शास्त्र में धातुओं को अनेकार्थ माना है? अतएव प्रकरण के अनुसार शर्थ करना उचित एवं संगत ही है। प्राचीन मायको भी यही बात अभीष्ट हैं
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शंका- पड्दर्शन, सर्वदर्शन आदि शब्दभी लोक प्रसिद्ध हैं। क्या वहां भी इन्द्रियोंसे देखना अर्थ ही लिया जाता है ?
उत्तर -- प्रथम नो जैनेवर आचार्योने प्रायः ऐसी कोई परिभाषा नहीं की है कि जिससे दर्शन शब्दका समीचीन श्रद्धानरूप आत्मपरिणाम अर्थ लियाजाय। दूसरी बात यह है कि उनकी श्रन्यतानुसार श्रद्धय विषय के स्वरूप में अन्तर होनेसे श्रद्धानमें भी अन्तर पडता ही हैं । एव स्वरूप वर्षा तथा विषय विपर्यास स्पष्ट है। तीखी बात यह है कि श्रद्धान या सम्यग्दर्शन शब्दसे शुद्धात्माका अवलोकन अर्थ अभीष्ट है । और दिगम्बर जैनागमके सिवाय धन्य किसी श्री दर्शनकारने आत्माका वास्तविक शुद्ध स्वरूप माना या बताया ही नहीं हैं। ऐसी अवस्था में दर्शनशब्द का प्रयोग यदि अन्य लोगों में पाया जाता है तो वह श्रागन्तुक-कहीं न कहींसे आया हुआ ही सममना चाहिये । अथवा रूढिवश वे उस शब्दका प्रयोग करते हैं किन्तु युक्ति युक्त और वास्तविक अर्थसे वे अनभिज्ञ हैं । यद्वा कहना चाहिये कि जैनागममें इस शब्दका जो अर्थ अभीष्ट है अन्य लोक उस अर्थ में उस शब्दका प्रयोग नहीं करते ।
प्रश्न – जैनागममें दर्शन शब्द सामान्य अवलोकन अर्थ में भी प्रसिद्ध हैं वह अर्थ भी asi क्यों न लिया जाय ?
उत्तर --- शब्दसादृस्य मात्रको देखकर एक अर्थ की कपना करना ठीक नहीं है जिसका
शेरालोकार्थत्वादभिप्रेतार्थसंप्रत्यय इति चेन, अनेकार्थत्वाद् || ३ || मोक्षमार्गप्रकरणाच्ानगतिः 29112-198कार्यमा । ३- मनसि० असदि ।