Book Title: Ratnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Author(s): Khubchand Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj
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रनकराা
और समीचीन सभी तत्वों की यथार्थता को निष्पक्ष रूपसे प्रकाशित कर जीवोंको अहिससे बचा कर सम्पूर्ण शास्वत निर्वाध सुखको प्राप्त करानेवाले वास्तविक मार्ग को बताता – दिखाता है । अब क्रमानुसार सम्यग्दर्शनके विषयभूत तपस्वी- गुरुका लक्षण या स्वरूप बताते हैं।--विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः ।
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ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी, स प्रशस्यते ॥ १० ॥
अध— जो विषयोंके याशा के आधीन नहीं है । जो असि मसी आदि जीविका के उपायभूत प्रारम्भ से रहित है जो अन्तरंग तथा बाथ किसी भी परिग्रहसे युक्त नहीं है और जो शन ध्यान तथा रूपमें अनुरक्त है वहीं तपस्वी प्रशंसनीय है। सच्चा तरोभूत् साधु-अनगारपुनि वही है ।
प्रयोजन - श्रागम में उसकी प्रामाणिकता और उपादेयता को स्पष्ट करने के लिए चार बातों पर विचार किया गया है । सम्बन्ध श्रभिधेय शब्दानुष्ठान और हष्ट प्रयोजन। जिसमें यह चार बाते नहीं पाई जाती ऐसा कोई भी शास्त्र न तो प्रमाण ही माना जा सकता और न उपादेय ही । जिसका कथन पूर्वापर सम्बन्धरहित है वह उन्मभवचन के समान है। वह प्रमाथ नहीं माना जा सकता। इसी तरह जिसका कोई वाच्यार्थ ही नहीं है। वह भी आदरयी किस तरह हो सकता है। एवं जिस उपदेश का पालन नहीं हो सकता । अथवा जिसका पालन तो हो सकता हो परन्तु प्रयोजन अभीष्ट न हो वह भी मान्य और उपादेप किस तरह हो सकता है । फलतः किसी भी कथन की प्रमाणता और आदरणीयता इन चार नावों पर निर्भर है।
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प्राप्त भगवान के जिस आगमका ऊपर वर्णन किया गया है वह इन चारों ही दोप रहित है । वह पूर्वापर विरुद्ध या असम्बद्ध नहीं है और न वाच्यार्थ हीन ही है । इसी तरह उसमें जिस विषयका वर्णन किया गया है वह अशक्य अथवा अनिष्ट प्रयोजन हो सो यह बात भी नहीं है।
अज्ञान अथवा तीव्र मोहके उदयके वशीभूत प्राणियों में इस तरह की शंकाऐं पायी जाती हैं कि जिनेन्द्र भगवान ने जिस श्रेयोमागका वर्णन किया है उसका पालन शक्य नहीं है। वह अत्यन्त दुर्धर क्रिष्ट और संक्रिष्ट है अतएव उसका यथावत पालन नहीं हो सकता। खासकर इस दुःपम कालमें जब कि नम दिगम्बर जिन मुद्रा के धारा पालन में अनेक अंतरंग बहिरंग कठिनाइयां पाई जाती हैं। अतएव इस तरह के वर्णन या आगमको अशक्यानुष्ठान संझना चाहिये ।
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१ -- रक्त: की जगह रत्नः भी पाठ पाया जाता है अर्थात् ज्ञानान और तप ही है रत्न जिसके । २--इशदाडिमादित्रम् - शशडिम नदी घोड़ा आदमी शक आदि की तरह असम्बद्ध प्रखाप | ३- बन्ध्यासुटो याति खपुष्पकृतशेखरः । इत्यादिषन् । ४-अपने घर में प्रकाश बनाए रखनेके लिए चन्द्रमा को लाने की उम्देश की तरह। 2- सवा स